बादल राग ( Badal Raag ) ( सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ): व्याख्या व प्रतिपाद्य
‘बादल राग’ कविता की व्याख्या तिरती है समीर-सागर पर अस्थिर सुख पर दुख की छाया जग के दग्ध हृदय पर निर्दय विप्लव की प्लावित माया यह तेरी रण-तरी, भरी आकांक्षाओं से, घन, भेरी-गर्जन से सजग, सुप्त अंकुर उर में पृथ्वी के, आशाओं से नव जीवन की, ऊंचा कर सिर, ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के … Read more