‘गैंग्रीन’ सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय

( ‘गैंग्रीन’ सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय द्वारा रचित प्रसिद्ध कहानी है जो हिंदी साहित्य जगत में ‘रोज’ नाम से प्रसिद्ध है | ) दोपहर में उस सूने आँगन में पैर रखते ही मुझे ऐसा जान पड़ा, मानोउस पर किसी शाप की छाया मँडरा रही हो, उसके वातावरण में कुछ ऐसा अकथ्य, अस्पृश्य, किन्तु फिर भी … Read more

गैंग्रीन कहानी की तात्विक समीक्षा ( Gangrene Kahani Ki Tatvik Samiksha )

( यहाँ कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित बी ए चतुर्थ सेमेस्टर की पाठ्य पुस्तक ‘कथाक्रम’ में संकलित गैंग्रीन कहानी की तात्विक समीक्षा प्रस्तुत की गई है |) ‘गैंग्रीन’ सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ की एक सुप्रसिद्ध कहानी है | पहले यह कहानी अज्ञेय जी के कहानी संकलन ‘विपथगा’ में ‘रोज’ नाम से प्रकाशित हुई थी | सन … Read more

सूनी सी सांझ एक ( Sooni Si Sanjh Ek ) : अज्ञेय

सूनी सी सांझ एक दबे पांव मेरे कमरे में आई थी | मुझको भी वहां देख थोड़ा सकुचाई थी | तभी मेरे मन में यह बात आई थी कि ठीक है, यह अच्छी है, उदास है, पर सच्ची है : इसी की साँवली छाँव में कुछ देर रहूँगा इसी की साँस की लहर पर बहूँगा … Read more

हमारा देश ( Hamara Desh ) : अज्ञेय

इन्हीं तृण-फूस छप्पर से ढँके ढुलमुल गँवारू झोपड़ों में ही हमारा देश बसता है | इन्हीं के ढोल-मादल बांसुरी के उमगते स्वर में हमारी साधना का रस बरसता है | इन्हीं के मर्म को अनजान शहरों की ढँकी लोलुप विषैली वासना का सांप डँसता है | इन्हीं में लहरती अल्हड़ अयानी संस्कृती की दुर्दशा पर … Read more

नदी के द्वीप ( Nadi Ke Dvip ) : अज्ञेय

हम नदी के द्वीप हैं हम नहीं कहते कि हमको छोड़कर स्रोतस्विनी बह जाय | वह हमें आकार देती है | हमारे कोण, गलियां, अंतरीप, उभार, सैकत कूल, सब गोलाइयाँ उसकी गढ़ी हैं | माँ है वह | है, इसी से हम बने हैं | (1) प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘समकालीन … Read more

कितनी नावों में कितनी बार ( Kitni Navon Mein Kitni Bar ) : अज्ञेय

कितनी दूरियों से कितनी बार कितनी डगमग नावों में बैठकर मैं तुम्हारीओर आया हूँ ओ मेरी छोटी-सी ज्योति ! कभी कुहासे में तुम्हें न देखता भी पर कुहासे की ही छोटी सी रुपहली झलमल में पहचानता हुआ तुम्हारा ही प्रभा-मंडल | कितनी बार मैं, धीर, आश्वस्त अक्लांत ओ मेरे अनबुझे सत्य ! कितनी बार…… (1) … Read more

यह दीप अकेला ( Yah Deep Akela ) : अज्ञेय

यह दीप, अकेला, स्नेह भरा है गर्व-भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो | यह जन है : गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गायेगा? पनडुब्बा : यह मोती सच्चे फिर कौन कृती लायेगा? यह समिधा : ऐसी आग हठीली बिरला सुलगायेगा | यह अद्वितीय : यह मेरा, यह मैं स्वयं विसर्जित : … Read more

साँप ( Saanp ) : अज्ञेय

साँप ! तुम सभ्य तो हुए नहीं नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया | एक बात पूछूं ( उत्तर दोगे? ) तब कैसे सीखा डँसना – विष कहाँ से पाया? प्रसंग — प्रस्तुत कविता हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘समकालीन हिंदी कविता’ में संकलित अज्ञेय द्वारा रचित ‘साँप’ कविता से अवतरित है | प्रस्तुत कविता के … Read more

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का साहित्यिक परिचय ( Agyey Ka Sahityik Parichay )

जीवन परिचय – सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हिंदी के प्रमुख साहित्यकार हैं | प्रयोगवाद के जनक के रूप में पहचाने जाने वाले अज्ञेय जी का जन्म उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में सन 1911 में हुआ | 1925 ईस्वी में इन्होंने मैट्रिक और 1929 ईस्वी में विज्ञान संकाय में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की | ये … Read more

नाच ( Naach ) : अज्ञेय

एक तनी हुई रस्सी है जिस पर मैं नाचता हूँ | जिस तनी हुई रस्सी पर मैं नाचता हूँ | वह दो खंभों के बीच है | रस्सी पर मैं जो नाचता हूँ | वह एक खंभे से दूसरे खंबे तक का नाच है | दो खंभों के बीच जिस तनी हुई रस्सी पर मैं … Read more

उड़ चल, हारिल ( Ud Chal Haaril ) : अज्ञेय

उड़ चल, हारिल, लिये हाथ में यही अकेला ओछा तिनका उषा जाग उठी प्राची में -कैसी बाट भरोसा किनका ! शक्ति रहे तेरे हाथों में – छूट ना जाय यह चाह जीवन की ; शक्ति रहे तेरे हाथों में – रुक ना जाय यह गति जीवन की ! (1) ऊपर-ऊपर-ऊपर-ऊपर-बढा चीरता चल दिक् मण्डल, अनथक … Read more

वस्तुनिष्ठ प्रश्न ( हिंदी ) बी ए द्वितीय वर्ष – चतुर्थ सेमेस्टर ( Objective Type Questions-Hindi, BA 2nd year,4th semester )

              ⚫️ वस्तुनिष्ठ प्रश्न ( हिंदी ) ⚫️ ( बी ए द्वितीय वर्ष-चतुर्थ सेमेस्टर ) 👉  ‘ईदगाह’ कहानी के लेखक कौन हैं? ▪️  मुंशी प्रेमचंद 👉 प्रेमचंद का वास्तविक नाम क्या था? ▪️ धनपत राय 👉 प्रेमचंद आरंभ में किस नाम से लिखते थे? ▪️ नवाब राय के नाम … Read more

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