चिट्ठियां ( Chithiyan ) : रघुवीर सहाय

आखिर जब कवि लिखने बैठा तो कि वह चिट्ठी लिखता है सब नृशंसताएं सामान्य हैं इक्कीसवीं वीं सदी में पुराणपंथी प्रसन्न हैं बीसवीं शताब्दी शेष होने लगी सब मेरे लोग एक-एक कर मरते हैं बार-बार बचे हुए लोगों की सूची बनाता हूँ जो बाकी बचे हुए लोगों के अते-पते बतलाएं जिससे ये चिट्ठियां मैं उनको … Read more

लोकतंत्र का संकट ( Loktantra ka Sankat ) रघुवीर सहाय

लोकतंत्र का संकट ( Loktantra Ka Sankat ) पुरुष जो सोच नहीं पा रहे किंतु अपने पदों पर आसीन है और चुप हैं तानाशाह क्या तुम्हें इनकी भी जरूरत होगी जैसे तुम्हें उनकी है जो कुछ न कुछ उटपटांग विरोध करते रहते हैं | सब व्यवस्थाएं अपने को और अधिक संकट के लिए तैयार करती … Read more

वस्तुनिष्ठ प्रश्न – बी ए ( हिंदी ) पंचम सेमेस्टर ( Objective Type Questions, BA Hindi, 5th Semester )

⚫️ कविवर ‘अज्ञेय’ किस काव्यधारा के कवि हैं? उत्तर – प्रयोगवादी काव्यधारा 🔹 ‘अज्ञेय’ का पूरा नाम क्या है? उत्तर – सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ 🔹 अज्ञेय का जन्म कब और कहां हुआ? उत्तर – अज्ञेय का जन्म 7 मार्च,1911 में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में हुआ | 🔹 अज्ञेय की मृत्यु कब हुई? उत्तर … Read more

नरेश मेहता का साहित्यिक परिचय ( Naresh Mehta Ka Sahityik Parichay )

जीवन परिचय – श्री नरेश मेहता नई कविता के प्रमुख कवि माने जाते हैं | अज्ञेय द्वारा संपादित ‘दूसरे तारसप्तक’ से उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई | श्री नरेश मेहता का जन्म 15 फरवरी, 1922 को मध्यप्रदेश के मालवा जिले के शाजापुर गांव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ | उनके पिता … Read more

डॉ धर्मवीर भारती का साहित्यिक परिचय ( Dr Dharamvir Bharati Ka Sahityik Parichay )

जीवन परिचय – डॉ धर्मवीर भारती प्रयोगवादी कविता के प्रमुख कवि थे | इनका जन्म 25 दिसंबर, 1926 को इलाहाबाद में हुआ | इनके पिता का नाम श्री चिरंजीव लाल वर्मा तथा माता का नाम श्रीमती चंदा देवी था | इन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी विश्वविद्यालय में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की तथा इसी विश्वविद्यालय … Read more

प्रेत का बयान ( Pret Ka Bayan ) : नागार्जुन

“ओ रे प्रेत” – कड़क कर बोले नरक के मालिक यमराज “सच-सच बतला ! कैसे मरा तू? भूख से, अकाल से? बुखार, कालाजार से? पेचिश, बदहजमी, प्लेग, महामारी से? कैसे मरा तू, सच-सच बतला?” खड़ खड़ खड़ खड़ हड़ हड़ हड़ हड़ काँपा कुछ हाड़ों का मानवीय ढांचा नचा कर लंबी चमचों-सा पंचगुरा हाथ रूखी … Read more

अकाल और उसके बाद ( Akaal Aur Uske Baad ) : नागार्जुन

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास, कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त, कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त | दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद, धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद, चमक उठी … Read more

बादल को घिरते देखा है ( Badal Ko Ghirte Dekha Hai ) : नागार्जुन

अमल धवल गिरि के शिखरों पर, बादल को घिरते देखा है | छोटे-छोटे मोती जैसे उसके शीतल तुहिन कणों को, मानसरोवर के उन स्वर्णिम, कमलों पर गिरते देखा है, बादल को घिरते देखा है | 1️⃣ तुंग हिमालय के कंधों पर छोटी-बड़ी कई झीलें हैं, उनके श्यामल नील सलिल में समतल देशों से आ-आकर पावस … Read more

सिंदूर तिलकित भाल ( Sindur Tilkit Bhal ) : नागार्जुन

घोर निर्जन में परिस्थिति ने दिया है डाल ! याद आता तुम्हारा सिंदूर तिलकित भाल ! कौन है वह व्यक्ति जिसको चाहिए न समाज? कौन है वह एक जिसको नहीं पड़ता दूसरे से काज? चाहिए किसको नहीं सहयोग? चाहिए किसको नहीं सहवास? कौन चाहेगा कि उसका शून्य में टकराए यह उच्छवास? हो गया हूँ मैं … Read more

उनको प्रणाम ( Unko Pranam ) :नागार्जुन

जो नहीं हो सके पूर्ण-काम मैं उनको करता हूँ प्रणाम ! कुछ कुंठित औ’ कुछ लक्ष्य भ्रष्ट जिनके अभिमंत्रित तीर हुए ; रण की समाप्ति के पहले ही जो वीर रिक्त तूणीर हुए ! (1) प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘समकालीन हिंदी कविता’ में संकलित नागार्जुन द्वारा रचित ‘उनको प्रणाम’ कविता से अवतरित … Read more

अरण्यानी से वापसी ( Aranyani Se Vapasi ) : नरेश मेहता

मेरी अरण्यानी ! मुझे यहाँ से वापस अपनी धरती अपनी शाश्वती के पास लौटना ही होगा ! ताकि मैं – मात्र एक व्यक्ति केवल एक कवि ने रहकर अपने समय की सबसे बड़ी घटना बन सकूँ – एक कविता ! कविता – जब केवल विचार होती है तब वह सत्य का साक्षात, तब वह आत्म-उपनिषद … Read more

मंत्र-गंध और भाषा ( Mantra Gandh Aur Bhasha ) : नरेश मेहता

कौन विश्वास करेगा फूल भी मंत्र होता है? मैं अपने चारों ओर एक भाषा का अनुभव करता हूँ जो ग्रंथों में नहीं होती पर जिसमें फूलों की-सी गंध और बिल्वपत्र की-सी पवित्रता है इसीलिए मंत्र केवल ग्रंथों में ही नहीं होते | (1) प्रसंग — प्रस्तुत पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘समकालीन हिंदी कविता’ में संकलित … Read more

विप्रलब्धा ( Vipralabdha ) : डॉ धर्मवीर भारती

बुझी हुई राख, टूटे हुए गीत, डूबे हुए चांद, रीते हुए पात्र, बीते हुए क्षण-सा – मेरा यह जिस्म कल तक जो जादू था, सूरज था, वेग था तुम्हारे आश्लेष में आज वह जूड़े से गिरे हुए बेले-सा टूटा है, म्लान है | दुगना सुनसान है बीते हुए उत्सव-सा, उठे हुए मेले-सा | (1) मेरा … Read more

थके हुए कलाकार से ( Thake Hue Kalakar Se ) : डॉ धर्मवीर भारती

सृजन की थकन भूल जा देवता ! अभी तो पड़ी है धरा अधबनी अभी तो पलक में नहीं खिल सकी नवल कल्पना की मधुर चाँदनी अभी अधखिली ज्योत्सना की कली नहीं जिंदगी की सुरभि में सनी – अभी तो पड़ी है धरा अधबनी, अधूरी धरा पर नहीं है कहीं अभी स्वर्ग की नींव का भी … Read more

गुलाम बनाने वाले ( Gulam Banane Vale ) : डॉ धर्मवीर भारती

और भी पहले वे कई बार आये हैं एक बार जब उनके हाथों में भाले थे घोड़ों की टापों से खैबर की चट्टानें काँपी थी एक बार जब भालों के बजाय उनके हाथों में तिजारती परवाने थे बगल में संगीने थी | (1) लेकिन इस बार और चुपके से आए हैं | आधे हैं, जिनके … Read more

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