बोआई का गीत ( Boai Ka Geet ) : डॉ धर्मवीर भारती

गोरी-गोरी सोंधी धरती कारे-कारे बीज बदरा पानी दे ! क्यारी-क्यारी गूंज उठा संगीत बोने वालो ! नई फसल में बोओगे क्या? बदरा पानी दे ! (1) मैं बोऊँगा वीरबहूटी, इंद्रधनुष सतरंग नये सितारे, नयी पीढ़ियाँ, नये धान का रंग हम बोयेंगे हरी चुनरियां , कजरी, मेहंदी – राखी के कुछ सूत और सावन की पहली … Read more

फागुन की शाम ( Fagun Ki Sham ) : डॉ धर्मवीर भारती

घाट के रस्ते उस बँसवट से इक पीली सी चिड़िया उसका कुछ अच्छा-सा नाम है ! मुझे पुकारे ! ताना मारे, भर आयें आँखड़ियाँ ! उन्मन, ये फागुन की शाम है ! (1) घाट की सीढ़ी तोड़-फोड़ कर बन-तुलसा उग आयीं झुरमुट से छन जल पर पड़ती सूरज की परछाईं तोतापंखी किरनों में हिलती बांसों … Read more

रथ का टूटा पहिया ( Rath Ka Tuta Pahiya ) : डॉ धर्मवीर भारती

मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ | लेकिन मुझे फेंको मत | क्या जाने कब इस दुरूह चक्रव्यूह में अक्षौहिणी सेनाओं को चुनौती देता हुआ कोई दुस्साहसी अभिमन्यु आकर घिर जाये | अपने पक्ष को असत्य जानते हुए भी बड़े-बड़े महारथी अकेली निहत्थी आवाज को अपने ब्रह्मास्त्रों से कुचल देना चाहे तब मैं रथ … Read more

सूनी सी सांझ एक ( Sooni Si Sanjh Ek ) : अज्ञेय

सूनी सी सांझ एक दबे पांव मेरे कमरे में आई थी | मुझको भी वहां देख थोड़ा सकुचाई थी | तभी मेरे मन में यह बात आई थी कि ठीक है, यह अच्छी है, उदास है, पर सच्ची है : इसी की साँवली छाँव में कुछ देर रहूँगा इसी की साँस की लहर पर बहूँगा … Read more

हमारा देश ( Hamara Desh ) : अज्ञेय

इन्हीं तृण-फूस छप्पर से ढँके ढुलमुल गँवारू झोपड़ों में ही हमारा देश बसता है | इन्हीं के ढोल-मादल बांसुरी के उमगते स्वर में हमारी साधना का रस बरसता है | इन्हीं के मर्म को अनजान शहरों की ढँकी लोलुप विषैली वासना का सांप डँसता है | इन्हीं में लहरती अल्हड़ अयानी संस्कृती की दुर्दशा पर … Read more

नदी के द्वीप ( Nadi Ke Dvip ) : अज्ञेय

हम नदी के द्वीप हैं हम नहीं कहते कि हमको छोड़कर स्रोतस्विनी बह जाय | वह हमें आकार देती है | हमारे कोण, गलियां, अंतरीप, उभार, सैकत कूल, सब गोलाइयाँ उसकी गढ़ी हैं | माँ है वह | है, इसी से हम बने हैं | (1) प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘समकालीन … Read more

कितनी नावों में कितनी बार ( Kitni Navon Mein Kitni Bar ) : अज्ञेय

कितनी दूरियों से कितनी बार कितनी डगमग नावों में बैठकर मैं तुम्हारीओर आया हूँ ओ मेरी छोटी-सी ज्योति ! कभी कुहासे में तुम्हें न देखता भी पर कुहासे की ही छोटी सी रुपहली झलमल में पहचानता हुआ तुम्हारा ही प्रभा-मंडल | कितनी बार मैं, धीर, आश्वस्त अक्लांत ओ मेरे अनबुझे सत्य ! कितनी बार…… (1) … Read more

यह दीप अकेला ( Yah Deep Akela ) : अज्ञेय

यह दीप, अकेला, स्नेह भरा है गर्व-भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो | यह जन है : गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गायेगा? पनडुब्बा : यह मोती सच्चे फिर कौन कृती लायेगा? यह समिधा : ऐसी आग हठीली बिरला सुलगायेगा | यह अद्वितीय : यह मेरा, यह मैं स्वयं विसर्जित : … Read more

साँप ( Saanp ) : अज्ञेय

साँप ! तुम सभ्य तो हुए नहीं नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया | एक बात पूछूं ( उत्तर दोगे? ) तब कैसे सीखा डँसना – विष कहाँ से पाया? प्रसंग — प्रस्तुत कविता हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘समकालीन हिंदी कविता’ में संकलित अज्ञेय द्वारा रचित ‘साँप’ कविता से अवतरित है | प्रस्तुत कविता के … Read more

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का साहित्यिक परिचय ( Agyey Ka Sahityik Parichay )

जीवन परिचय – सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हिंदी के प्रमुख साहित्यकार हैं | प्रयोगवाद के जनक के रूप में पहचाने जाने वाले अज्ञेय जी का जन्म उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में सन 1911 में हुआ | 1925 ईस्वी में इन्होंने मैट्रिक और 1929 ईस्वी में विज्ञान संकाय में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की | ये … Read more

नाच ( Naach ) : अज्ञेय

एक तनी हुई रस्सी है जिस पर मैं नाचता हूँ | जिस तनी हुई रस्सी पर मैं नाचता हूँ | वह दो खंभों के बीच है | रस्सी पर मैं जो नाचता हूँ | वह एक खंभे से दूसरे खंबे तक का नाच है | दो खंभों के बीच जिस तनी हुई रस्सी पर मैं … Read more

उड़ चल, हारिल ( Ud Chal Haaril ) : अज्ञेय

उड़ चल, हारिल, लिये हाथ में यही अकेला ओछा तिनका उषा जाग उठी प्राची में -कैसी बाट भरोसा किनका ! शक्ति रहे तेरे हाथों में – छूट ना जाय यह चाह जीवन की ; शक्ति रहे तेरे हाथों में – रुक ना जाय यह गति जीवन की ! (1) ऊपर-ऊपर-ऊपर-ऊपर-बढा चीरता चल दिक् मण्डल, अनथक … Read more

पल्लवन : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं और नियम ( Pallavan : Arth, Paribhasha, Visheshtayen Aur Niyam )

पल्लवन किसी भाव का विस्तार है जो उसे समझने में सहायक सिद्ध होता है | विद्वान, संत-महात्मा आदि समास -शैली और प्रतीकात्मक शब्दों का प्रयोग करते हुए ऐसी गंभीर बात कह देते हैं जो उनके लिए तो सहज-सरल होती है पर सामान्य व्यक्ति के लिए उसके भाव को समझने में कठिनाई होती है | ऐसे … Read more

संक्षेपण : अर्थ, विशेषताएं और नियम ( Sankshepan : Arth, Visheshtayen Aur Niyam )

संक्षेपण एक कला है जिसका संबंध किसी विस्तृत विषय वस्तु या संदर्भ को संक्षेप में प्रस्तुत करने से होता है | विभिन्न संस्थानों, कार्यालयों और विद्यार्थियों के लिए इसका विशेष महत्व है | इसके अंतर्गत अनावश्यक और अप्रासंगिक अंशों को छोड़कर मूल भाव को ध्यान में रखकर उपयोगी तथ्यों को संक्षेप में प्रकट किया जाता … Read more

प्रयोगवादी कविता ( नई कविता ) की सामान्य प्रवृतियां ( Prayogvadi kaviata / Nai Kavita Ki Samanya Pravrittiyan )

      प्रयोगवादी कविता की सामान्य प्रवृतियां      ( Prayogvadi Kavita/ Nai Kavita Ki Visheshtayen ) हिंदी साहित्य के इतिहास को मुख्यत: तीन भागों में बांटा जा सकता है आदिकाल,  मध्यकाल और आधुनिक काल | आदिकाल की समय सीमा संवत 1050 से संवत 1375 तक मानी जाती है | मध्य काल के पूर्ववर्ती … Read more

error: Content is proteced protected !!