तोड़ती पत्थर ( Todti Patthar ) (सूर्यकांत त्रिपाठी निराला): व्याख्या व प्रतिपाद्य
‘तोड़ती पत्थर’ कविता की व्याख्या वह तोड़ती पत्थर ; देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर वह तोड़ती पत्थर नहीं छायादार पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार ; श्याम तन भर बंधा यौवन, नत-नयन, प्रिय-कर्म-रत मन, गुरु हथौड़ा हाथ, करती बार-बार प्रहार सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार | (1) चढ़ रही थी धूप, गर्मियों के … Read more