पथ के साथी : साहित्य-रूप पर विचार ( Path Ke Sathi : Sahitya Roop Par Vichar )

हिंदी साहित्य में कुछ ऐसी विधाएँ भी हैं जो भिन्न होते हुए भी कुछ न कुछ समानताएं रखती हैं | हिंदी साहित्य में संस्मरण, रेखाचित्र व चरित्र-प्रधान कहानीयाँ ऐसी ही विधाएं हैं | प्रसिद्ध गद्य लेखिका व कवियत्री महादेवी वर्मा ( Mahadevi Verma ) ने ऐसी तीन रचनाएं लिखी हैं – स्मृति की रेखाएं, अतीत … Read more

मैला आँचल : नायकत्व पर विचार ( Maila Aanchal : Nayaktv Par Vichar )

मैला आंचल ( Maila Aanchal ) फणीश्वर नाथ रेणु ( Fanishwarnath Renu ) द्वारा रचित एक प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यास है | अनेक विद्वान मैला आंचल उपन्यास को न केवल आंचलिक उपन्यास धारा का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास मानते हैं बल्कि संपूर्ण हिंदी साहित्य में इसे एक विशिष्ट स्थान प्रदान करते हैं | यही कारण है कि यह … Read more

‘मैला आँचल’ उपन्यास में निरूपित लोक संस्कृति ( Maila Aanchal Upanyas Mein Nirupit Lok Sanskriti )

मैला आंचल( Maila Aanchal ) फणीश्वर नाथ रेणु ( Fanishwarnath Renu ) द्वारा रचित एक प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यास है | इस उपन्यास का प्रकाशन 1954 ईस्वी में हुआ | इसे हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ आंचलिक उपन्यास माना जाता है | आंचलिक उपन्यास के मुख्य रूप से दो प्रधान लक्षण माने जाते हैं – 1. किसी … Read more

मैला आंचल में आंचलिकता ( Maila Aanchal Me Aanchlikta )

मैला आँचल ( Maila Aanchal ) फणीश्वरनाथ रेणु ( Fanishwarnath Renu ) द्वारा रचित हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासों में से एक है | यह उपन्यास 1954 ईo. में प्रकाशित हुआ | आंचलिक उपन्यासधारा में मैला आँचल को सर्वश्रेष्ठ उपन्यास माना जाता है | मैला आंचल ( Maila Aanchal ) की आंचलिकता पर विचार करने से … Read more

गोदान में ग्रामीण व नागरिक कथाओं का पारस्परिक संबंध ( Godan : Gramin V Nagrik Kathaon Ka Parasparik Sambandh )

गोदान ( Godan ) मुंशी प्रेमचंद जी की एक प्रौढ़ रचना है | इसमें मुंशी प्रेमचंद ( Premchand ) जी ने अपने युग का यथार्थ वर्णन किया है | प्रेमचंद कलम के सिपाही माने जाते हैं | वे अपनी लेखनी के माध्यम से ग्रामीण समस्याओं को सुलझा कर नारकीय जीवन जीने वाले ग्रामीणों को दुखों … Read more

गोदान में आदर्शोन्मुख यथार्थवाद ( Godan Mein Aadarshonmukh Yatharthvad )

हिंदी साहित्य में प्रेमचंद ( Premchand ) को उपन्यास सम्राट के नाम से जाना जाता है | गोदान ( Godan ) उनकी प्रौढ़ रचना मानी जाती है | यह उपन्यास सन 1936 में प्रकाशित हुआ | उनका यह उपन्यास सबसे अधिक आलोचना का विषय रहा |उनके कुछ उपन्यास ठेठ यथार्थवाद लिए हुए हैं लेकिन गोदान … Read more

गोदान में कृषक जीवन ( Godan Mein Krishak Jivan )

गोदान मुंशी प्रेमचंद जी का सर्वाधिक प्रसिद्ध उपन्यास है | गोदान ग्रामीण जीवन की कहानी है जिसका नायक होरी एक निर्धन किसान है | होरी की कथा वास्तव में तत्कालीन भारत के अनेक किसानों की दुखद कथा है | किसान अपने परिवार के साथ खेतों में जी तोड़ मेहनत करते हैं परंतु समाज के शोषक … Read more

गोदान का मूल भाव / उद्देश्य या समस्याएं ( Godan Ka Mool Bhav / Uddeshy Ya Samasyayen )

साहित्यकार जब किसी विषय पर लिखता है तो उसका कोई ना कोई उद्देश्य अवश्य होता है फिर उपन्यास तो साहित्य की एक ऐसी विधा है जो जीवन के विविध रंगों को हमारे सामने प्रस्तुत करती है | उपन्यास में जीवन की विभिन्न स्थितियों का वर्णन होता है | वे स्थितियां-परिस्थितियां अच्छी भी हो सकती हैं … Read more

रूपिम की अवधारणा : अर्थ, परिभाषा और भेद ( Rupim Ki Avdharna : Arth, Paribhasha Aur Bhed )

  भाषा विज्ञान की दृष्टि से वाक्य भाषा की प्रथम महत्वपूर्ण सार्थक इकाई है परंतु वाक्य को अनेक खंडों में विभाजित किया जा सकता है यह खंड ही पद या रूप कहलाते हैं |  जब तक कोई शब्द केवल शब्दकोश तक सीमित होता है या वाक्य में प्रयुक्त नहीं होता तब तक वह केवल शब्द … Read more

हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग : भक्तिकाल ( Hindi Sahitya Ka Swarn Yug :Bhaktikal )

      हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग : भक्तिकाल  ‘भक्तिकाल’ की समय सीमा संवत् 1375 से 1700 संवत् तक मानी  जाती है । भक्तिकाल हिंदी साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण काल है जिसे इसकी विशेषताओं के कारण इसे स्वर्ण युग कहा जाता है । राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, दार्शनिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अंतर्विरोधों से परिपूर्ण … Read more

भक्ति आंदोलन : उद्भव एवं विकास ( Bhakti Andolan : Udbhav Evam Vikas )

           भक्ति आंदोलन : उद्भव एवं विकास  ( Bhakti Andolan : Udbhav Evam Vikas )   ईश्वर के प्रति जो परम श्रद्धा, आस्था व प्रेम है – उसे भक्ति    कहते    हैं। नारद भक्ति-सूत्र    के अनुसार –“परमात्मा  के प्रति परम प्रेम को भक्ति कहते हैं |”  भक्ति शब्द की निष्पति … Read more

आदिकाल : प्रमुख कवि, रचनाएं व नामकरण ( Aadikal ke Pramukh Kavi, Rachnayen Evam Naamkaran )

       आदिकाल की प्रमुख रचनाएं एवं नामकरण  Aadikal ki Pramukh Rachnayen Evam Namkaran  ▪️ सरहपाद ( 769 ईस्वी ) – दोहाकोश▪️ स्वयंभू (आठवीं सदी) –  पउम चरिउ, णयकुमार चरिउ, नागकुमार चरिउ👉 [ पउम चरिउ ( राम कथा)  के कारण स्वयंभू को अपभ्रंश का वाल्मीकि कहा जाता है | ] ▪️ जोइंदु (आठवीं सदी) … Read more

पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण : समन्वयवादी सिद्धांत ( Paribhashik Shabdavali : Samnvayvadi Siddhant )

 पारिभाषिक शब्दावली : समन्वयवादी सिद्धांत पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण को लेकर विद्वानों में  आपसी मतभेद है | पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण को लेकर तीन संप्रदाय प्रचलित हैं – राष्ट्रीयतावादी संप्रदाय, अंतरराष्ट्रीयतावादी संप्रदाय और समन्वयवादी संप्रदाय  | कुछ विद्वान मानते हैं कि पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण राष्ट्रवादी सम्प्रदाय के अनुसार होना चाहिए| इस मत के समर्थक … Read more

पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण : अंतर्राष्ट्रीयतावादी सिद्धांत ( Paribhshik Shabdavali ka Nirman : Antarrashtriytavadi Siddhant )

पारिभाषिक शब्दावली : अंतरराष्ट्रीयतावादी सिद्धांत ( Paribhashik Shabdavali : Antarrashtriytavadi Siddhant ) पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण को लेकर विद्वानों में  आपसी मतभेद है | पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण को लेकर तीन संप्रदाय प्रचलित हैं – राष्ट्रीयतावादी संप्रदाय, अंतरराष्ट्रीयतावादी संप्रदाय और समन्वयवादी संप्रदाय  | कुछ विद्वान मानते हैं कि पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण राष्ट्रवादी सम्प्रदाय के … Read more

पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण : राष्ट्रीयतावादी संप्रदाय ( Paribhashik Shabdavali Ka Nirman : Rashtriytavadi Sampraday )

पारिभाषिक शब्दावली : राष्ट्रीयतावादी संप्रदाय  ( Paribhashik Shabdavali ke Nirman Ka Rashtriytavadi Siddhant )  पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण को लेकर विद्वानों में  आपसी मतभेद है | पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण को लेकर तीन संप्रदाय प्रचलित हैं – राष्ट्रीयतावादी संप्रदाय, अंतरराष्ट्रीयतावादी संप्रदाय और समन्वयवादी संप्रदाय  | कुछ विद्वान मानते हैं कि पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण राष्ट्रवादी … Read more

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