शब्द-शक्ति : अर्थ व प्रमुख भेद ( Shabd Shakti : Arth V Pramukh Bhed )

शब्द और अर्थ का आपस में अभिन्न संबंध होता है | जो बोला या लिखा जाता है वह शब्द होता है तथा उस बोले अथवा लिखे हुए से सुनने वाले की समझ में जो आता है वह अर्थ होता है | उदाहरण के लिए अगर किसी ने बोला ‘गाय’ | इस शब्द को सुनकर सुनने … Read more

प्रेत का बयान ( Pret Ka Bayan ) : नागार्जुन

“ओ रे प्रेत” – कड़क कर बोले नरक के मालिक यमराज “सच-सच बतला ! कैसे मरा तू? भूख से, अकाल से? बुखार, कालाजार से? पेचिश, बदहजमी, प्लेग, महामारी से? कैसे मरा तू, सच-सच बतला?” खड़ खड़ खड़ खड़ हड़ हड़ हड़ हड़ काँपा कुछ हाड़ों का मानवीय ढांचा नचा कर लंबी चमचों-सा पंचगुरा हाथ रूखी … Read more

अकाल और उसके बाद ( Akaal Aur Uske Baad ) : नागार्जुन

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास, कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त, कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त | दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद, धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद, चमक उठी … Read more

बादल को घिरते देखा है ( Badal Ko Ghirte Dekha Hai ) : नागार्जुन

अमल धवल गिरि के शिखरों पर, बादल को घिरते देखा है | छोटे-छोटे मोती जैसे उसके शीतल तुहिन कणों को, मानसरोवर के उन स्वर्णिम, कमलों पर गिरते देखा है, बादल को घिरते देखा है | 1️⃣ तुंग हिमालय के कंधों पर छोटी-बड़ी कई झीलें हैं, उनके श्यामल नील सलिल में समतल देशों से आ-आकर पावस … Read more

सूरदास का साहित्यिक परिचय ( Surdas Ka Sahityik Parichay )

जीवन परिचय – सूरदास जी भक्तिकालीन सगुण काव्यधारा की कृष्ण काव्य धारा के सर्वाधिक प्रमुख कवि हैं | उन्हें अष्टछाप का जहाज कहा जाता है | उनकी जन्म-तिथि तथा जन्म-स्थान को लेकर विद्वानों में मतभेद है फिर भी अधिकांश विद्वान मानते हैं कि सूरदास का जन्म सन 1478 ईस्वी ( सम्वत 1535 ) में हुआ … Read more

सिंदूर तिलकित भाल ( Sindur Tilkit Bhal ) : नागार्जुन

घोर निर्जन में परिस्थिति ने दिया है डाल ! याद आता तुम्हारा सिंदूर तिलकित भाल ! कौन है वह व्यक्ति जिसको चाहिए न समाज? कौन है वह एक जिसको नहीं पड़ता दूसरे से काज? चाहिए किसको नहीं सहयोग? चाहिए किसको नहीं सहवास? कौन चाहेगा कि उसका शून्य में टकराए यह उच्छवास? हो गया हूँ मैं … Read more

उनको प्रणाम ( Unko Pranam ) :नागार्जुन

जो नहीं हो सके पूर्ण-काम मैं उनको करता हूँ प्रणाम ! कुछ कुंठित औ’ कुछ लक्ष्य भ्रष्ट जिनके अभिमंत्रित तीर हुए ; रण की समाप्ति के पहले ही जो वीर रिक्त तूणीर हुए ! (1) प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘समकालीन हिंदी कविता’ में संकलित नागार्जुन द्वारा रचित ‘उनको प्रणाम’ कविता से अवतरित … Read more

कबीरदास का साहित्यिक परिचय ( Kabirdas Ka Sahityik Parichay )

जीवन परिचय – महाकवि कबीरदास न केवल संतकाव्य धारा के अपितु संपूर्ण हिंदी साहित्य के महान कवि थे | यद्यपि वे निरक्षर थे तथापि उनकी अभिव्यक्ति क्षमता विलक्षण थी | कबीरदास जी की जन्म तिथि को लेकर विद्वानों में मतभेद है फिर भी अधिकांश विद्वान यह स्वीकार करते हैं कि इनका जन्म सन 1398 ईस्वी … Read more

आँसू ( Aansu ) : जयशंकर प्रसाद

इस करुणा कलित हृदय में अब विकल रागिनी बजती क्यों हाहाकार स्वरों में वेदना असीम गरजती? शीतल ज्वाला जलती है ईंधन होता दृग जल का यह व्यर्थ सांस चल-चलकर करती है काम अनिल का | (1) जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति-सी छायी दुर्दिन में आँसू बनकर वह आज बरसने आयी शशि मुख पर … Read more

वे मुस्काते फूल नहीं ( Ve Muskate Fool Nahin ) : महादेवी वर्मा

वे मुस्काते फूल नहीं – जिनको आता है मुरझाना, वे तारों के दीप नहीं – जिनको भाता है बुझ जाना ; (1) वे नीलम के मेघ नहीं – जिनको है घुल जाने की चाह, वह अनंत ऋतुराज, नहीं- जिसने देखी जीने की राह | (2) वे सूने से नयन, नहीं- जिनमें बनाते आँसू-मोती, वह प्राणों … Read more

दुख की बदली ( Dukh Ki Badli ) : महादेवी वर्मा

मैं नीर-भरी दुख की बदली स्पंदन में चिर निस्पंद बसा, क्रंदन में आहत विश्व हंसा, नयनों में दीपक-से जलते, पलकों में निर्झरिणी मचली | (1) मेरा पग-पग संगीत-भरा, श्वासों से स्वप्न-पराग झरा, नभ के नव रंग बुनते दुकूल, छाया में मलय-बयार पली | (2) में क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल, चिंता का भार बनी अविरल, रज-कण … Read more

कौन तुम मेरे हृदय में ( Kaun Tum Mere Hriday Mein ) : महादेवी वर्मा

कौन तुम मेरे हृदय में? कौन मेरी कसक में नित मधुरता भरता अलक्षित? कौन प्यासे लोचनों में घुमड़ घिर झरता अपरिचित? स्वर्ण-स्वप्नों का चितेरा नींद के सूने निलय में ! कौन तुम मेरे हृदय में? (1) अनुसरण निश्वास मेरे कर रहे किसका निरंतर? चूमने पदचिन्ह किसके लौटते यह श्वास फिर-फिर? कौन बंदी कर मुझे अब … Read more

कह दे माँ क्या अब देखूँ ! ( Kah De Maan Kya Ab Dekhun ) : महादेवी वर्मा

देखूँ खिलती कलियाँ या प्यासे सूखे अधरों को, तेरी चिर यौवन-सुषमा या जर्जर जीवन देखूँ ! देखूँ हिम-हीरक हँसते हिलते नीले कमलों पर, या मुरझाई पलकों से झरते आँसू-कण देखूँ ! (1) प्रसंग — प्रस्तुत अवतरण महादेवी वर्मा के द्वारा रचित कविता ‘कह दे माँ क्या अब देखूँ’ से अवतरित है जिसमें कवयित्री ने प्रकृति … Read more

फूल के बोल ( Fool Ke Bol ) : भारत भूषण अग्रवाल

हँसते-खिलखिलाते रंग-बिरंगे फूल क्यारी में देख कर जी तृप्त हो गया | नथुनों से प्राणों तक खिंच गयी गंध की लकीर-सी आँखों में हो गई रंगों की बरसात ; अनायास कह उठा : ‘वाह, धन्य है वसंत ऋतु !’ (1) लौटने को पैर जो बढ़ाये तो क्यारी के कोने में दुबका एक नन्हा फूल अचानक … Read more

दूँगा मैं ( Dunga Main ) : भारत भूषण अग्रवाल

दूँगा मैं नहीं, नहीं हिचकूँगा कि मेरी अकिंचनता अनन्य है कि मैं ऐसा हूँ कि मानो हूँ ही नहीं हाँ, नहीं हिचकूँगा कि तुम्हें तृप्त कर पाऊं : मुझ में सामर्थ्य कहाँ कि अपने को नि:स्व करके भी तुम्हें बांध नहीं पाऊंगा और नहीं सोचूंगा यह भी कि आखिर तो तुम मुझे छोड़ चले जाओगे … Read more

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