फूल के बोल ( Fool Ke Bol ) : भारत भूषण अग्रवाल
हँसते-खिलखिलाते रंग-बिरंगे फूल क्यारी में देख कर जी तृप्त हो गया | नथुनों से प्राणों तक खिंच गयी गंध की लकीर-सी आँखों में हो गई रंगों की बरसात ; अनायास कह उठा : ‘वाह, धन्य है वसंत ऋतु !’ (1) लौटने को पैर जो बढ़ाये तो क्यारी के कोने में दुबका एक नन्हा फूल अचानक … Read more