फूल के बोल ( Fool Ke Bol ) : भारत भूषण अग्रवाल

हँसते-खिलखिलाते रंग-बिरंगे फूल क्यारी में देख कर जी तृप्त हो गया | नथुनों से प्राणों तक खिंच गयी गंध की लकीर-सी आँखों में हो गई रंगों की बरसात ; अनायास कह उठा : ‘वाह, धन्य है वसंत ऋतु !’ (1) लौटने को पैर जो बढ़ाये तो क्यारी के कोने में दुबका एक नन्हा फूल अचानक … Read more

दूँगा मैं ( Dunga Main ) : भारत भूषण अग्रवाल

दूँगा मैं नहीं, नहीं हिचकूँगा कि मेरी अकिंचनता अनन्य है कि मैं ऐसा हूँ कि मानो हूँ ही नहीं हाँ, नहीं हिचकूँगा कि तुम्हें तृप्त कर पाऊं : मुझ में सामर्थ्य कहाँ कि अपने को नि:स्व करके भी तुम्हें बांध नहीं पाऊंगा और नहीं सोचूंगा यह भी कि आखिर तो तुम मुझे छोड़ चले जाओगे … Read more

आने वालों से एक सवाल ( Aane Valon Se Ek Sawal ) : भारत भूषण अग्रवाल

तुम, जो आज से पूरे सौ वर्ष बाद मेरी कविताएं पढ़ोगे तुम, मेरी धरती की नयी पौध के फूल तुम, जिनके लिए मेरा तन-मन खाद बनेगा तुम, जब मेरी इन रचनाओं को पढ़ोगे तो तुम्हें कैसा लगेगा : इस का मेरे मन में बड़ा कौतूहल है | (1) बचपन में तुम्हें हिटलर और गांधी की … Read more

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