शीर्षक-लेखन का महत्त्व एवं विशेषताएँ

समाचार, निबंध, कहानी, उपन्यास व किसी भी साहित्यिक विधा में शीर्षक का विशेष महत्त्व है | समाचार-लेखन में शीर्षक-लेखन का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है | प्रायः समाचार पत्रों के पाठक शीर्षक को देखकर ही उसे पढ़ने या छोड़ने का निर्णय लेते हैं | अतः समाचार के शीर्षक का सरल, संक्षिप्त और जिज्ञासावर्धक होना … Read more

भाषा का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं एवं स्वरूप

भाषा का मूल अर्थ – बोलना या कहना है | साधारण शब्दों में मानव-मुख से निकलने वाली ध्वनियों को भाषा कहा जाता है | लेकिन मानव मुख से निकलने वाली प्रत्येक ध्वनि भाषा नहीं होती | वास्तव में मानव-मुख से निकलने वाली वह सार्थक ध्वनियां जो विचारों या भावों का संप्रेषण करती हैं, भाषा कहलाती … Read more

भाषा के विविध रूप / भेद / प्रकार ( Bhasha Ke Vividh Roop / Bhed / Prakar )

सामान्य शब्दों में भाषा शब्द का प्रयोग मनुष्य की व्यक्त वाणी के लिए किया जाता है | भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाता है और दूसरों के विचार समझ पाता है | यद्यपि कुछ कार्य संकेतों और शारीरिक कष्टों के द्वारा किया जा सकता है लेकिन यह पर्याप्त … Read more

रस सिद्धांत ( Ras Siddhant )

भरत मुनि का रस सिद्धांत ( Ras Siddhant ) भारतीय काव्यशास्त्र का महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है | रस सिद्धांत ( Ras Siddhant ) की विवेचना करने से पूर्व ‘रस’ के अर्थ को जानना आवश्यक होगा | ‘रस’ का सामान्य अर्थ आनंद से लिया जाता है | भारतीय साहित्य शास्त्र में रस की अवधारणा अत्यंत प्राचीन है … Read more

गीतिकाव्य : अर्थ, परिभाषा, प्रवृत्तियाँ /विशेषताएँ व स्वरूप ( Gitikavya : Arth, Paribhasha, Visheshtayen V Swaroop )

सामान्य शब्दों में गीतिकाव्य का अर्थ ( Geetikavya Ka Arth ) है – ‘गाया जा सकने वाला काव्य‘ परंतु प्रत्येक गाए जाने वाले काव्य को गीतिकाव्य नहीं कहा जा सकता | जिस गीत में तीव्र भावानुभूति, संगीतात्मकता, वैयक्तिकता आदि गुण होते हैं, उसे गीतिकाव्य कहते हैं | मानव सभ्यता में गीत की प्राचीन परंपरा है … Read more

खंडकाव्य : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं ( तत्त्व ) व स्वरूप ( Khandkavya : Arth, Paribhasa, Visheshtayen V Swaroop )

भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य के प्रमुख रूप से दो भेद हैं – दृश्य काव्य तथा श्रव्य काव्य | शैली के आधार पर श्रव्य काव्य के तीन भेद माने गए हैं – पद्य, गद्य और चंपू | पद्य के पुनः दो भेद हैं – प्रबंध काव्य और मुक्तक काव्य | प्रबंध काव्य के भी दो भेद … Read more

महाकाव्य : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं ( तत्त्व ) व स्वरूप ( Mahakavya : Arth, Paribhasha, Visheshtayen V Swaroop )

भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य के प्रमुख रूप से दो भेद हैं – दृश्य काव्य तथा श्रव्य काव्य | शैली के आधार पर श्रव्य काव्य के तीन भेद माने गए हैं – पद्य, गद्य और चंपू | पद्य के पुनः दो भेद हैं – प्रबंध काव्य और मुक्तक काव्य | प्रबंध काव्य के भी दो भेद … Read more

काव्य के भेद / प्रकार ( Kavya Ke Bhed / Prakar )

संस्कृत काव्यशास्त्र में ‘काव्यादर्श’ के रचयिता दण्डी ने कहा है कि वाणी के वरदान से ही मानव जीवन की विकास यात्रा पूरी होती है | वाणी के कारण मनुष्य अपने अतीत के ज्ञान को सुरक्षित रखता है तथा वर्तमान ज्ञान व अनुभवों को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाता है | प्राचीन काल में वाणी के … Read more

काव्य हेतु : अर्थ, परिभाषा, स्वरूप और प्रासंगिकता या महत्त्व ( Kavya Hetu : Arth, Paribhasha V Swaroop )

काव्य-हेतु का अर्थ ( Kavya Hetu Ka Arth ) सामान्यत: उन तत्वों को जो काव्य-रचना के मूल कारण होते हैं, काव्य हेतु कहा जाता है | इनको निमित्त कारण भी कहते हैं | निमित्त कारण उन कारणों को कहते हैं जो काव्य-रचना के निमित्त होते हैं अर्थात जिनके बिना काव्य रचना नहीं हो सकती | … Read more

काव्य : अर्थ, परिभाषा( काव्य लक्षण ) और स्वरूप ( Kavya : Arth, Paribhasha V Swaroop )

काव्य के स्वरूप को जानने से पूर्व काव्य के अर्थ, परिभाषा व लक्षणों को जानना प्रासंगिक होगा | संस्कृत के काव्य शास्त्रियों ने प्रायः कवि-कर्म को काव्य कहा है | अतः ‘कवि’ शब्द से ही ‘काव्य’ की उत्पत्ति मानी जा सकती है | ‘कवि’ शब्द ‘कु’ धातु में ‘इच्’ प्रत्यय लगने से बना हैै | … Read more

हिंदी पत्रकारिता का उद्भव एवं विकास ( Hindi Patrakarita Ka Udbhav Evam Vikas )

प्राक्कथन पत्रकारिता का संबंध समाचार पत्रों से है | समाचार पत्र समाचारों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाते हैं | समाचार पत्र किसी घटना या सूचना को मुद्रित रूप में पाठकों के सामने लाते हैं | इस प्रकार देश के किसी कोने की घटना की सूचना दिल्ली या चंडीगढ़ के समाचार पत्रों के … Read more

द्विवेदी युग : समय-सीमा, प्रमुख कवि तथा प्रवृत्तियाँ ( Dvivedi Yug : Samay Seema, Pramukh Kavi V Pravrittiyan )

हिंदी साहित्य के इतिहास को मुख्यत: तीन भागों में बांटा जा सकता है आदिकाल,  मध्यकाल और आधुनिक काल | आदिकाल की समय सीमा संवत 1050 से संवत 1375 तक मानी जाती है | मध्य काल के पूर्ववर्ती भाग को भक्तिकाल तथा उत्तरवर्ती काल को रीतिकाल के नाम से जाना जाता है |  भक्तिकाल की समय-सीमा … Read more

कृष्ण काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां/ विशेषताएं ( Krishna Kavya Parampara Evam Pravrittiyan / Visheshtaen )

कृष्ण काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां / विशेषताएँ  ( Krishna Kavya : Parampara Evam Pravrittiyan/Visheshtayen )   हिंदी साहित्य के इतिहास को मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है – आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल | हिंदी साहित्य-इतिहास के काल विभाजन और नामकरण को निम्नलिखित आलेख के माध्यम से भली  प्रकार समझा जा … Read more

मैथिलीशरण गुप्त ( Maithilisharan Gupt )

जन्म – 3 अगस्त, 1886 ( चिरगांव, झाँसी )प्रति वर्ष 3 अगस्त को उनकी जयंती ‘कवि दिवस’ के रूप में मनायी जाती है | लक्ष्मीकांत शर्मा ने उनकी जयंती को कवि दिवस के रूप में मनाने का विचार दिया था | मृत्यु – 12 दिसम्बर, 1964 ( झाँसी ) पिता – रामचरण गुप्त ( कनकलता … Read more

डॉ लक्ष्मी नारायण लाल के नाटक ( Dr. Lakshminarayan Lal Ke Natak )

डॉ लक्ष्मी नारायण लाल ( 1927 – 1987 ) स्वातंत्र्योत्तर भारत के प्रमुख नाटककार हैं | इन्होंने हिंदी नाटक को नई पहचान दिलाई | उन्होंने अपनी लेखनी से अनेक नाटकों की रचना की | उनके द्वारा रचित प्रमुख नाटक निम्नलिखित हैं :- अंधा कुआं ( 1955 ) – लक्ष्मीनारायण लाल का पहला नाटक, प्रमुख पात्र … Read more

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