सखी, वे मुझसे कहकर जाते ( मैथिलीशरण गुप्त )

सखि, वे मुझसे कहकर जाते, कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते ?मुझको बहुत उन्होंने माना फिर भी क्या पूरा पहचाना ?मैंने मुख्य उसी को जाना जो वे मन में लाते।सखि, वे मुझसे कहकर जाते।स्वंय सुसज्जित करके क्षण में, प्रियतम को, प्राणों के पण में, हमी भेज देती हैं रण में क्षात्र-धर्म के … Read more

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