कुरुक्षेत्र : चतुर्थ सर्ग ( Kurukshetra : Chaturth Sarg ) (रामधारी सिंह दिनकर )

कुरुक्षेत्र ( चतुर्थ सर्ग ) : व्याख्या पितामह कह रहे कौन्तेय से रण की कथा हैं, विचारों की लड़ी में गूंथते जाते व्यथा हैं | हृदय-सागर मथित होकर कभी जब डोलता है, छिपी निज वेदना गंभीर नर भी बोलता है | (1) चुराता न्याय जो, रण को बुलाता भी वही है, युधिष्ठिर ! स्वत्व की … Read more

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