मीराबाई के पद

1 मण थे परस हरि रे चरण।सुभग सीतल कँवल कोमल, जगत ज्वाला हरण।इण चरण प्रह्लाद परस्यां, इन्द्र पदवी धरण।इण चरण ध्रुव अटल करस्यां, सरण असरण सरण।इण चरण ब्रह्मांड मेटयां, नखसियां सिरी भरण।इण चरण कलिया नाथ्यां गोपलीला करण।इण चरण गोबर धन धारयां, गरब मघवा हरण।दासि मीरां लाल गिरधर, अगम तारण तरण।। प्रसंग — प्रस्तुत पद्यांश हमारी … Read more

काव्यात्मा संबंधी विचार

वेदों व अन्य प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में आत्मा शब्द का प्रयोग श्वास, प्राण, जीवन, परमात्मा आदि अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है| विभिन्न दार्शनिकों का विचार है कि यह आत्मा परमात्मा का एक अंश है। अतः आत्मा और परमात्मा में अंश-पूर्ण का सम्बन्ध है। मानव शरीर इसी आत्मा के कारण जीवित है। काव्यशास्त्र में काव्यात्मा … Read more

पुरस्कार ( जयशंकर प्रसाद )

( ‘पुरस्कार’ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित प्रसिद्ध कहानी है जिसमें प्रेम पर राष्ट्रप्रेम की महत्ता का प्रतिपादन किया गया है | ) आर्द्रा नक्षत्र, आकाश में काले-काले बादलों की घुमड़, जिसमें देव दुंदुभि का गंभीर घोष। प्राची के एक निरभ्र कोने से स्वर्ण-पुरुष झाँकने लगा था-देखने लगा महाराज की सवारी। शैलमाला के अंचल में समतल … Read more

सूर्यातप,तापमान, ताप कटिबंध व तापांतर

सूर्यातप, तापमान, ताप कटिबंध व तापांतर के अर्थ, प्रकारों तथा इनको प्रभावित करने वाले कारकों का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है — सूर्यातप पृथ्वी तथा उसके वायुमंडल के लिए समस्त ऊर्जा का स्रोत सूर्य है। सूर्य के तल से ऊष्मा निरन्तर लघु तरंगों (Short Waves) के रूप में विकिरित होती रहती है | सूर्य से … Read more

‘यशोधरा’ काव्य का भाव पक्ष एवं कला पक्ष

मैथिलीशरण गुप्त जी द्विवेदी युग के प्रमुख कवि थे। उन्होंने ‘यशोधरा’ में गाँधी जी के व्यावहारिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। उनका जीवन-सन्देश वैयक्तिक जीवन को परिष्कृत करने वाला और लोक में वासना, कामना और इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने का दिशा-निर्देश करने वाला है। ‘यशोधरा’ काव्य में गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा की विरह-वेदना … Read more

औचित्य सिद्धांत : अवधारणा एवं स्थापनाएं

औचित्य सिद्धांत भारतीय काव्यशास्त्र सिद्धांतों में सबसे नवीन सिद्धांत है | भारतीय काव्यशास्त्र के अन्य सभी सिद्धांतों के अस्तित्व में आने के पश्चात इस सिद्धांत का आविर्भाव हुआ | दूसरे शब्दों में इसे संस्कृत काव्यशास्त्र का अंतिम सिद्धांत भी कह सकते हैं | आचार्य क्षेमेंद्र ने औचित्य सिद्धांत का प्रवर्तन किया | यह सिद्धांत आने … Read more

पारिस्थितिक तंत्र : अर्थ, विशेषताएं, संरचना तथा प्रकार

पारिस्थितिक तंत्र का अर्थ पारिस्थितिक तंत्र ( Ecosystem ) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम ए जी टान्सले ने 1935 में किया | टॉन्सले के अनुसार पारिस्थितिक तंत्र भौतिक तंत्रों का एक विशेष प्रकार होता है जिसकी रचना जीवों तथा अजैविक संघटकों से होती है | यह अपेक्षाकृत स्थिर दशा में होता है | यह विवृत्त तंत्र … Read more

ध्वनि सिद्धांत ( Dhvani Siddhant )

भारतीय काव्यशास्त्र में ध्वनि-सिद्धांत का अभ्युदय 9वीं सदी में हुआ | इससे पूर्व रस सिद्धांत, अलंकार सिद्धांत तथा रीति सिद्धांत को पर्याप्त लोकप्रियता मिल चुकी थी | ध्वनि-सिद्धांत के संस्थापक आनंदवर्धन ने ध्वनि की मौलिक उदभावना करके काव्य के अंतर्तत्त्वों की विशद व्याख्या की | उन्होंने काव्यात्मा के संदर्भ में प्रचलित भ्रांतियों पर व्यापक प्रकाश … Read more

पवन की उत्पत्ति के कारण व प्रकार

एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर चलने वाली वायु ( Air ) को पवन ( Wind ) कहते हैं | पवन के प्रकारों को जानने से पहले पवन की उत्पत्ति के कारण जानना आवश्यक होगा | पवन की उत्पत्ति के कारण पवन धरातल पर वायुदाब में क्षैतिज विषमताओं के कारण चलती है | जिस … Read more

वायुमंडलीय दाब : अर्थ एवं प्रकार

वायुमंडलीय दाब पृथ्वी के वायुमंडल में किसी सतह की एक इकाई पर उससे ऊपर की हवा के वजन द्वारा लगाया गया बल है | अधिकांश परिस्थितियों में वायुमंडलीय दबाव का लगभग सही अनुपात मापन बिंदु पर उसके ऊपर वाली हवा के वजन द्वारा लगाए गए द्रव स्थैतिक दबाव द्वारा लगाया जाता है | वायु एक … Read more

आर्द्रता, बादल तथा वर्षण

आर्द्रता, बादल तथा वर्षण वायुमंडल तथा पृथ्वी पर जल उपलब्धता के विभिन्न माध्यम हैं | इनका विस्तृत वर्णन इस प्रकार है — आर्द्रता ( Humidity ) वायुमंडल में उपस्थित जलवाष्प को आर्द्रता कहते हैं | वायुमंडल में इसकी मात्रा शून्य से 4% तक पाई जाती है | यह वायुमंडल में तीन रूपों में मिलता है … Read more

वाताग्र की उत्पत्ति के कारण व प्रकार

स्पाइलर के अनुसार — “दो विपरीत वायुराशियों के मिलन-स्थल को वाताग्र कहते हैं |” साधारणत: वाताग्र न तो धरातलीय सतह के समानांतर होता है और न ही उस पर लंबवत होता है बल्कि कुछ कोण पर झुका हुआ होता है | पृथ्वी पर सभी स्थानों पर वाताग्र का ढाल एक समान नहीं होता | वास्तव … Read more

चक्रवात और प्रतिचक्रवात

पवनों का ऐसा चक्र जिसमें अंदर की ओर वायुदाब कम और बाहर की ओर अधिक होता है, चक्रवात ( Cyclone ) कहलाता है | यह वृत्ताकार या अंडाकार होता है | चक्रवात और प्रतिचक्रवात के निर्माण में वाताग्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है | चक्रवात में वायु चारों ओर उच्च वायु भार के क्षेत्र से … Read more

महासागरीय धाराएं : उत्पत्ति के कारक व प्रकार

महासागरीय धारा महासागरों के एक भाग से दूसरे भाग की ओर विशेष दिशा में जल के निरंतर प्रवाह को महासागरीय धारा कहते हैं | धारा के दोनों किनारों पर तथा उसके नीचे जल स्थित रहता है | दूसरे शब्दों में महासागरीय धाराएं स्थल पर बहने वाली नदियों के समान हैं परंतु महासागरीय धाराएं स्थलीय नदियों … Read more

समुद्री संसाधन और प्रवाल भित्तियां

समुद्री-संसाधन महासागर से अनेक प्रकार के समुद्री संसाधन प्राप्त होते हैं जिन्हें हम मुख्य रूप से तीन वर्गों में बांट सकते हैं — (1 ) जीवीय संसाधन, (2 ) खनिज संसाधन एवं (3 ) ऊर्जा संसाधन | (1 ) जीवीय संसाधन समुद्री जल में लाखों किस्म के जीव रहते हैं जिनका प्रयोग मनुष्य अपने लाभ … Read more

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