वाणिज्यवाद : अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, विशेषताएँ, काल व उदय के कारण

14वीं व 15वीं सदी में यूरोप में अनेक परिवर्तन हुए | इन परिवर्तनों का प्रभाव समाज, धर्म व राजनीति आदि हर क्षेत्र पर पड़ा | इन परिवर्तनों के कारण समाज के क्षेत्र में पुनर्जागरण तथा धर्म के क्षेत्र में धर्म सुधार आंदोलन, राजनीति के क्षेत्र में राष्ट्रवाद तथा अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में वाणिज्यवाद का उदय … Read more

पूंजीवाद : अर्थ, परिभाषा विशेषताएं / लक्षण, उदय के कारण व प्रभाव

व्यापारी क्रांति के कारण आधुनिक अर्थव्यवस्था ने एक नई विशेषता ग्रहण की | इस नई विशेषता को पूंजीवाद कहा जाता है | पूंजीवाद के दो मूल तत्व होते हैं – (1) औजारों एवं संसाधनों पर निजी स्वामित्व, (2) अधिक से अधिक लाभ कमाना | पूंजीवादी व्यवस्था में धन कुछ लोगों के पास ही होता है … Read more

धर्म सुधार आंदोलन के कारण / कारक या परिस्थितियां

सोलवीं सदी के आरंभ में यूरोप में धर्म सुधार आंदोलन ( Religious Reform Movement ) आरंभ हुआ | यह आंदोलन जर्मनी के मार्टिन लूथर ने आरंभ किया था लेकिन शीघ्र ही यह यूरोप के सभी देशों में फैल गया | धर्म सुधार आंदोलन का विस्तृत विवेचन करने से पूर्व धर्म सुधार आंदोलन के अर्थ को … Read more

पुनर्जागरण का अर्थ, परिभाषा एवं उदय के कारण

पुनर्जागरण ( Renaissance ) प्राचीन यूनान में रोम की सभ्यताओं से प्रेरित था | यह 14वीं सदी में इटली से शुरू हुआ तथा 17वीं सदी तक सारे यूरोप में फैल गया | इस आंदोलन को ‘रेनेसां'( Renaissance ) की संज्ञा दी जाती है | पुनर्जागरण का अर्थ एवं परिभाषा ( Meaning Of Renaissance ) यूरोप … Read more

सामंतवाद के पतन के कारण ( Samantvad Ke Patan Ke Karan )

उत्तर मध्यकाल में यूरोप में सामंतवाद ( Feudalism ) अपने पतन की ओर अग्रसर होने लगा था | 15वीं और 16वीं सदी में अनेक परिवर्तन हुए | अनेक शक्तिशाली राष्ट्रीय राज्यों का उदय हुआ | फलत: सामंतवाद ( Feudalism ) के बंधन ढीले पड़ने लगे | सामंतवाद के पतन व आधुनिक काल के उदय के … Read more

रीति सिद्धांत : अवधारणा एवं स्थापनाएँ

अलंकार सिद्धांत के पश्चात रीति सिद्धांत ( Riti Siddhant ) भारतीय काव्यशास्त्र की एक महत्वपूर्ण देन कही जा सकती है | रीति सिद्धांत का प्रवर्तन अलंकारवादी सिद्धांत की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप माना जाता है | रीति सिद्धांत के प्रवर्तक श्रेय आचार्य वामन माने जाते हैं जिन्होंने अपनी रचना ‘काव्यालंकारसूत्रवृत्ति’ में इसका विस्तृत विवेचन किया है … Read more

अलंकार सिद्धांत : अवधारणा एवं प्रमुख स्थापनाएँ

अलंकार सिद्धांत भारतीय काव्यशास्त्र में सर्वाधिक प्राचीन सिद्धांत है | प्रत्येक आचार्य ने अलंकारों को किसी न किसी रूप में महत्व दिया है | अलंकार सिद्धांत के प्रतिपादक भामह माने जाते हैं परंतु भामह के अतिरिक्त दंडी, उद्भट तथा रूद्रट ने भी अलंकारों की अनिवार्यता का जोरदार समर्थन किया है | अलंकार सिद्धांत के विषय … Read more

सहृदय की अवधारणा ( Sahridya Ki Avdharna )

‘रस सिद्धांत’ के अंतर्गत रस-निष्पत्ति, साधारणीकरण आदि की विस्तृत चर्चा हुई है | इसके पश्चात साधारणीकरण की प्रक्रिया में सहृदय की अवधारणा की चर्चा हुई | इसका कारण यह है कि रसानुभूति सहृदय ही करता है | सहृदय का अर्थ एवं स्वरूप ( Sahridya Ka Arth Evam Swaroop ) ‘सहृदय’ शब्द का अर्थ है – … Read more

साधारणीकरण : अर्थ, परिभाषा एवं स्वरूप

साधारणीकरण के सिद्धांत की चर्चा रस-निष्पत्ति के संदर्भ में ही की जाती है | आचार्य भरतमुनि के रस सूत्र – ‘विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगादरसनिष्पत्ति:’ – की व्याख्या करते हुए भट्टनायक ने इस सिद्धांत का प्रवर्त्तन किया | पाश्चात्य विचारकों टी एस इलियट आदि ने भी इस सिद्धांत के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की है | विद्वान प्रायः यह … Read more

हरियाणवी नाट्य साहित्य ( Haryanvi Natya Sahitya )

हरियाणवी नाट्य साहित्य हरियाणवी उपन्यास और कहानी साहित्य की भांति बहुत अधिक विस्तृत नहीं है | हरियाणवी भाषा में दृश्य नाटक तथा श्रव्य नाटक दोनों प्रकार के नाटक लिखे गए हैं परंतु हरियाणवी नाटकों की संख्या अधिक नहीं है | हरियाणवी भाषा में रचित केवल कुछ नाटक ही ऐसे हैं जो कतिपय विद्वानों द्वारा बताए … Read more

हरियाणवी कहानी साहित्य ( Haryanvi Kahani Sahitya )

कहानी गद्य साहित्य की एक ऐसी विधा है जिसमें किसी व्यक्ति के संपूर्ण जीवन का चित्रण न कर उसके जीवन के किसी अंग विशेष का चित्रण किया जाता है | कहानी कहना मनुष्य का स्वभाव है | सुख-दुख, आशा-निराशा, मिलन-विरह आदि का नाम ही जीवन है | मनुष्य के जीवन की यही खट्टी-मीठी बातें आकर्षक … Read more

मैथिलीशरण गुप्त कृत ‘यशोधरा’ में गीत-योजना

‘यशोधरा‘ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित एक प्रगीतात्मक प्रबंध काव्य है जिसमें सुंदर गीत-योजना के माध्यम से यशोधरा की विरह-भावना का मार्मिक चित्रण किया गया है | मैथिलीशरण गुप्त कृत ‘यशोधरा’ में गीत-योजना की समीक्षा करने से पूर्व गीति काव्य के स्वरूप पर विचार करना आवश्यक एवं प्रासंगिक होगा | गीतिकाव्य का अर्थ एवं स्वरूप गीतिकाव्य … Read more

हरियाणवी उपन्यास साहित्य ( Haryanvi Upnyas Sahitya )

आधुनिक साहित्य में गद्य विधाओं का प्रचुर मात्रा में विकास हुआ है | संभवत: इसीलिए विद्वानों ने आधुनिक युग को गद्य युग की संज्ञा से अभिहित किया है | उपन्यास भी गद्य साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा है | हरियाणवी उपन्यास साहित्य की परंपरा को जानने से पूर्व उपन्यास के अर्थ को जानना आवश्यक होगा … Read more

मैथिलीशरण गुप्त कृत ‘यशोधरा’ के आधार पर यशोधरा का चरित्र-चित्रण

‘यशोधरा‘ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित एक प्रसिद्ध खंडकाव्य है जिसमें गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा की विरह-वेदना का मार्मिक वर्णन किया गया है | गुप्त जी ने अपनी इस रचना के माध्यम से यशोधरा के प्रेम व त्याग को पाठकों के समक्ष लाकर उसके प्रति उस सम्मानित दृष्टिकोण को विकसित करने की चेष्टा की है … Read more

‘यशोधरा’ काव्य में विरह-वर्णन ( ‘Yashodhara’ Kavya Mein Virah Varnan )

‘यशोधरा’ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित एक प्रसिद्ध प्रबंध काव्य है जिसमें काव्य-रूप के दृष्टिकोण से महाकाव्य के अनेक तत्व मिलते हैं परंतु फिर भी अधिकांश विद्वान इसे खंडकाव्य के रूप में स्वीकार करते हैं | ‘यशोधरा’ काव्य में विरह-वर्णन सहज एवं स्वाभाविक रूप से हुआ है | साहित्यशास्त्र के अनुसार विरह की दस अवस्थाएँ … Read more