जर्मनी का एकीकरण ( Unification of Germany )

जर्मनी के एकीकरण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका बिस्मार्क की थी | प्रशा के शासक फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ की मृत्यु के पश्चात विलियम प्रथम शासक बना उसने | उसने 1862 ईस्वी में बिस्मार्क को प्रशा का चांसलर ( प्रधानमंत्री ) नियुक्त किया | प्रधानमंत्री का पद संभालते ही बिस्मार्क ने कहा – “मेरी सबसे बड़ी इच्छा … Read more

वक्रोक्ति सिद्धांत : स्वरूप व अवधारणा ( Vakrokti Siddhant : Swaroop V Avdharna )

वक्रोक्ति सिद्धांत ( Vakrokti Siddhant ) भारतीय काव्यशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धाँत है | वक्रोक्ति सिद्धांत के प्रवर्त्तक आचार्य कुंतक थे | आचार्य कुंतक से पहले के आचार्य वक्रोक्ति को अलंकार मात्र मानते थे परन्तु आचार्य कुंतक ने वक्रोक्ति को विशेष महत्त्व प्रदान किया | कुंतक ने वक्रोक्ति को काव्य के सौंदर्य का आधार मानते … Read more

फ्रांस की क्रांति के कारण व प्रभाव / परिणाम

फ्रांस की 1789 ईस्वी की क्रांति केवल फ्रांस की आंतरिक घटना नहीं बल्कि एक विश्व घटना थी | इस क्रांति ने विश्व इतिहास की दिशा बदल दी | फ्रांस की क्रांति के कारण फ्रांस की क्रांति ( French Revolution ) कोई आकस्मिक घटना नहीं थी | इस क्रांति के लिए अनेक सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक … Read more

औद्योगिक क्रांति का अर्थ, कारण, विकास व प्रभाव

18वीं सदी के आरंभ में यूरोप में औद्योगिक क्रांति का प्रादुर्भाव हुआ | सर्वप्रथम यह क्रांति इंग्लैंड में हुई | तत्पश्चात धीरे-धीरे यूरोप के अन्य देशों में औद्योगिक क्रांति हुई | औद्योगिक क्रांति के कारणों व प्रभावों का विस्तृत वर्णन करने से पूर्व औद्योगिक क्रांति के अर्थ को जानना नितांत प्रासंगिक होगा | औद्योगिक क्रांति … Read more

कृषि क्रांति : अर्थ, परिभाषा, काल, कारण व प्रभाव ( Krishi Kranti : Arth, Paribhasha, Kaal, Karan V Prabhav )

कृषि क्रांति से अभिप्राय है – कृषि उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि | 16वीं सदी से 18वीं सदी के बीच यूरोप में कृषि के क्षेत्र में अनेक परिवर्तन हुए | खेतों की चकबंदी और बाड़बंदी की गई | कृषि के नए औजारों व नए तरीकों का आविष्कार हुआ | उत्पादन एवं मुनाफा बढ़ने लगा | परिणामस्वरूप … Read more

वाणिज्यवाद : अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, विशेषताएँ, काल व उदय के कारण

14वीं व 15वीं सदी में यूरोप में अनेक परिवर्तन हुए | इन परिवर्तनों का प्रभाव समाज, धर्म व राजनीति आदि हर क्षेत्र पर पड़ा | इन परिवर्तनों के कारण समाज के क्षेत्र में पुनर्जागरण तथा धर्म के क्षेत्र में धर्म सुधार आंदोलन, राजनीति के क्षेत्र में राष्ट्रवाद तथा अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में वाणिज्यवाद का उदय … Read more

पूंजीवाद : अर्थ, परिभाषा विशेषताएं / लक्षण, उदय के कारण व प्रभाव

व्यापारी क्रांति के कारण आधुनिक अर्थव्यवस्था ने एक नई विशेषता ग्रहण की | इस नई विशेषता को पूंजीवाद कहा जाता है | पूंजीवाद के दो मूल तत्व होते हैं – (1) औजारों एवं संसाधनों पर निजी स्वामित्व, (2) अधिक से अधिक लाभ कमाना | पूंजीवादी व्यवस्था में धन कुछ लोगों के पास ही होता है … Read more

धर्म सुधार आंदोलन के कारण / कारक या परिस्थितियां

सोलवीं सदी के आरंभ में यूरोप में धर्म सुधार आंदोलन ( Religious Reform Movement ) आरंभ हुआ | यह आंदोलन जर्मनी के मार्टिन लूथर ने आरंभ किया था लेकिन शीघ्र ही यह यूरोप के सभी देशों में फैल गया | धर्म सुधार आंदोलन का विस्तृत विवेचन करने से पूर्व धर्म सुधार आंदोलन के अर्थ को … Read more

पुनर्जागरण का अर्थ, परिभाषा एवं उदय के कारण

पुनर्जागरण ( Renaissance ) प्राचीन यूनान में रोम की सभ्यताओं से प्रेरित था | यह 14वीं सदी में इटली से शुरू हुआ तथा 17वीं सदी तक सारे यूरोप में फैल गया | इस आंदोलन को ‘रेनेसां'( Renaissance ) की संज्ञा दी जाती है | पुनर्जागरण का अर्थ एवं परिभाषा ( Meaning Of Renaissance ) यूरोप … Read more

सामंतवाद के पतन के कारण ( Samantvad Ke Patan Ke Karan )

उत्तर मध्यकाल में यूरोप में सामंतवाद ( Feudalism ) अपने पतन की ओर अग्रसर होने लगा था | 15वीं और 16वीं सदी में अनेक परिवर्तन हुए | अनेक शक्तिशाली राष्ट्रीय राज्यों का उदय हुआ | फलत: सामंतवाद ( Feudalism ) के बंधन ढीले पड़ने लगे | सामंतवाद के पतन व आधुनिक काल के उदय के … Read more

रीति सिद्धांत : अवधारणा एवं स्थापनाएँ

अलंकार सिद्धांत के पश्चात रीति सिद्धांत ( Riti Siddhant ) भारतीय काव्यशास्त्र की एक महत्वपूर्ण देन कही जा सकती है | रीति सिद्धांत का प्रवर्तन अलंकारवादी सिद्धांत की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप माना जाता है | रीति सिद्धांत के प्रवर्तक श्रेय आचार्य वामन माने जाते हैं जिन्होंने अपनी रचना ‘काव्यालंकारसूत्रवृत्ति’ में इसका विस्तृत विवेचन किया है … Read more

अलंकार सिद्धांत : अवधारणा एवं प्रमुख स्थापनाएँ

अलंकार सिद्धांत भारतीय काव्यशास्त्र में सर्वाधिक प्राचीन सिद्धांत है | प्रत्येक आचार्य ने अलंकारों को किसी न किसी रूप में महत्व दिया है | अलंकार सिद्धांत के प्रतिपादक भामह माने जाते हैं परंतु भामह के अतिरिक्त दंडी, उद्भट तथा रूद्रट ने भी अलंकारों की अनिवार्यता का जोरदार समर्थन किया है | अलंकार सिद्धांत के विषय … Read more

सहृदय की अवधारणा ( Sahridya Ki Avdharna )

‘रस सिद्धांत’ के अंतर्गत रस-निष्पत्ति, साधारणीकरण आदि की विस्तृत चर्चा हुई है | इसके पश्चात साधारणीकरण की प्रक्रिया में सहृदय की अवधारणा की चर्चा हुई | इसका कारण यह है कि रसानुभूति सहृदय ही करता है | सहृदय का अर्थ एवं स्वरूप ( Sahridya Ka Arth Evam Swaroop ) ‘सहृदय’ शब्द का अर्थ है – … Read more

साधारणीकरण : अर्थ, परिभाषा एवं स्वरूप

साधारणीकरण के सिद्धांत की चर्चा रस-निष्पत्ति के संदर्भ में ही की जाती है | आचार्य भरतमुनि के रस सूत्र – ‘विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगादरसनिष्पत्ति:’ – की व्याख्या करते हुए भट्टनायक ने इस सिद्धांत का प्रवर्त्तन किया | पाश्चात्य विचारकों टी एस इलियट आदि ने भी इस सिद्धांत के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की है | विद्वान प्रायः यह … Read more

हरियाणवी नाट्य साहित्य ( Haryanvi Natya Sahitya )

हरियाणवी नाट्य साहित्य हरियाणवी उपन्यास और कहानी साहित्य की भांति बहुत अधिक विस्तृत नहीं है | हरियाणवी भाषा में दृश्य नाटक तथा श्रव्य नाटक दोनों प्रकार के नाटक लिखे गए हैं परंतु हरियाणवी नाटकों की संख्या अधिक नहीं है | हरियाणवी भाषा में रचित केवल कुछ नाटक ही ऐसे हैं जो कतिपय विद्वानों द्वारा बताए … Read more

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