द्विवेदी युग : समय-सीमा, प्रमुख कवि तथा प्रवृत्तियाँ ( Dvivedi Yug : Samay Seema, Pramukh Kavi V Pravrittiyan )

हिंदी साहित्य के इतिहास को मुख्यत: तीन भागों में बांटा जा सकता है आदिकाल,  मध्यकाल और आधुनिक काल | आदिकाल की समय सीमा संवत 1050 से संवत 1375 तक मानी जाती है | मध्य काल के पूर्ववर्ती भाग को भक्तिकाल तथा उत्तरवर्ती काल को रीतिकाल के नाम से जाना जाता है |  भक्तिकाल की समय-सीमा … Read more

जयद्रथ वध ( Jaydrath Vadh ) : मैथिलीशरण गुप्त ( सप्रसंग व्याख्या )

जयद्रथ वध ( मैथिलीशरण गुप्त ) : व्याख्या उन्मत्त विजयोल्लास से, सब लोग मत-गयन्द-से, राजा युधिष्ठिर के निकट पहुंचे बड़े आनंद से | देखा युधिष्ठिर ने उन्हें जब, जान ली निज जय तभी, सुख-चिन्ह से ही चित्त की बुध जान लेते हैं सभी || तब अर्जुनादिक ने उन्हें बढ़कर प्रणाम किया वहां, सिर पर उन्होंने … Read more

सविनय अवज्ञा आंदोलन : कारण, कार्यक्रम, प्रगति और महत्त्व ( Savinay Avagya Andolan : Karan, Karykram, Pragti Aur Mahattv )

सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930 ईस्वी में महात्मा गांधी ने चलाया | इस आंदोलन का विस्तृत वर्णन किस प्रकार है :- सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रमुख कारण ( Savinay Avagya Aandolan ke Pramukh Karan ) 1. साइमन कमीशन साइमन कमीशन 1928 ईस्वी में भारत आया | यह कमीशन 1919 ईस्वी के सुधारों का जायजा लेने आया … Read more

असहयोग आंदोलन : कारण, आरंभ व प्रसार, कार्यक्रम और महत्व ( Asahyog Andolan : Karan, Karykram, Arambh, Prasar V Mahattv )

असहयोग आंदोलन 1920 ईस्वी में महात्मा गांधी ने चलाया |असहयोग आंदोलन का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है :- असहयोग का अर्थ असहयोग का सामान्य अर्थ है – सहयोग ने करना | असहयोग आंदोलन का मुख्य कार्यक्रम सरकार का हर क्षेत्र में असहयोग करना था | सरकारी उपाधियों का त्याग करना, सरकारी अदालतों को त्याग देना, … Read more

संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया ( Sandesh Yahan Nahin Main Swarg Ka Laya ) : मैथिलीशरण गुप्त

संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया ( मैथिलीशरण गुप्त ) : व्याख्या निज रक्षा का अधिकार रहे जन-जन को, सब की सुविधा का भार किंतु शासन को | मैं आर्यों का आदर्श बताने आया, जन-सम्मुख धन को तुच्छ जताने आया | सुख-शांति हेतु में क्रांति मचाने आया, विश्वासी का विश्वास बचाने आया | (1) … Read more

1905 ईo से 1922 ईo के मध्य भारत में सांप्रदायिक राजनीति का विकास

उन्नीसवीं सदी के आरंभ में भारत में सांप्रदायिकता के चिह्न नजर नहीं आते थे परंतु 1890 ईस्वी के बाद हिंदू-मुसलमानों में मनमुटाव बढ़ने लगा | कांग्रेस की स्थापना के पश्चात अंग्रेज मुसलमानों का समर्थन करने लगे थे ताकि कांग्रेस के प्रभाव को कम किया जा सके | इस प्रकार अंग्रेजों ने ‘फूट डालो और राज … Read more

हिंदी नाटक : उद्भव एवं विकास ( Hindi Natak : Udbhav Evam Vikas )

हिंदी में नाटक के उद्भव एवं विकास को 19वीं सदी से  स्वीकार किया जाता है लेकिन दशरथ ओझा ने नाटक को 13वीं सदी से स्वीकार करते हुए ‘गाय कुमार रास’ को हिंदी का पहला नाटक ( Hindi ka Pahla Natak ) माना है | उन्होंने मैथिली नाटकों, रासलीला तथा अन्य पद्यबद्ध नाटकों की चर्चा करते … Read more

विश्व स्वास्थ्य संगठन ( World Health Organization )

विश्व स्वास्थ्य संगठन ( World Health Organization ) ◼️ विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) संयुक्त राष्ट्र के 16 विशिष्ट अभिकरणों (Specialised Agencies) में से एक है, जिसका प्रमुख उद्देश्य विश्व स्वास्थ्य में प्रोन्नति लाना है। यह विश्व का स्वास्थ्य सम्बंधी अग्रणी संगठन है। इसकी नीतियों, कार्यक्रमों तथा प्रयासों का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जन स्वास्थ्य पर बहुत … Read more

पवनदूती / पवन दूतिका ( Pavandooti ) – प्रिय प्रवास – अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ -षष्ठ सर्ग ( मंदाक्रांता छंद )

नाना चिंता सहित दिन को राधिका थी बिताती | आंखों को थी सजल रखती उन्मना थी बिताती | शोभा वाले जलद वपु की, हो रही चातकी थी | उत्कंठा थी परम प्रबला, वेदना वर्द्धिता थी || (1) बैठी खिन्ना यक दिवस वे, गेह में थी अकेली | आके आंसू युगल दृग में, थे धरा को … Read more

राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में सहायक तत्व या कारक ( Rashtriya Andolan Ke Vikas Mein Sahayak Tattv Ya Karak )

1857 ईo क्रांति असफल हो गई थी परंतु इस क्रांति के पश्चात भारत में राष्ट्रीयता का तेजी से विकास होने लगा | 1857 ईo की क्रांति ने लोगों को इस बात का एहसास करा दिया कि अगर वे संगठित होकर अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन करें तो वह दिन दूर नहीं जब अंग्रेजों को भारत से … Read more

कृष्ण काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां/ विशेषताएं ( Krishna Kavya Parampara Evam Pravrittiyan / Visheshtaen )

कृष्ण काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां / विशेषताएँ  ( Krishna Kavya : Parampara Evam Pravrittiyan/Visheshtayen )   हिंदी साहित्य के इतिहास को मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है – आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल | हिंदी साहित्य-इतिहास के काल विभाजन और नामकरण को निम्नलिखित आलेख के माध्यम से भली  प्रकार समझा जा … Read more

सांप्रदायिकता : अर्थ, परिभाषा, उद्भव एवं विकास ( Sampradayikta Ka Arth, Paribhasha, Udbhav Evam Vikas )

उन्नीसवीं सदी के अंत तक राष्ट्रवाद के साथ-साथ सांप्रदायिकता का विकास होने लगा था | इसके विकास के साथ-साथ राष्ट्रीय आंदोलन की एकता के लिए खतरा उत्पन्न होने लगा था | सांप्रदायिकता के उद्भव और विकास को जानने से पहले इसके अर्थ को जानना आवश्यक है | सांप्रदायिकता का अर्थ ( Sampradayikta Ka Arth ) … Read more

1857 ईo की क्रांति के पश्चात प्रशासनिक व्यवस्था में परिवर्तन

1858 ईस्वी में भारत में प्रशासनिक व्यवस्था में व्यापक परिवर्तन किए गए | भारत में कंपनी के शासन का अंत कर दिया गया और भारत का शासन ब्रिटेन की संसद के अधीन कर दिया गया | 1858 ईo में प्रशासनिक व्यवस्था में किए गए परिवर्तनों का वर्णन इस प्रकार : – (क ) केंद्रीय प्रशासन … Read more

1857 ईo की क्रांति की प्रकृति या स्वरूप ( 1857 Ki Kranti Ki Prakriti Ya Swaroop )

1857 ईo की क्रांति ( Revolution of 1857 ) के स्वरूप के संबंध में विभिन्न विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत हैं | कुछ इतिहासकार जैसे सर जॉन लॉरेंस, सीले, मार्शमैन, सर सैयद अहमद खां के अनुसार यह भारतीय सैनिकों का अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह था | सर जॉन लॉरेंस के अनुसार – “यह क्रांति वास्तव में … Read more

कुरुक्षेत्र : चतुर्थ सर्ग ( Kurukshetra : Chaturth Sarg ) (रामधारी सिंह दिनकर )

कुरुक्षेत्र ( चतुर्थ सर्ग ) : व्याख्या पितामह कह रहे कौन्तेय से रण की कथा हैं, विचारों की लड़ी में गूंथते जाते व्यथा हैं | हृदय-सागर मथित होकर कभी जब डोलता है, छिपी निज वेदना गंभीर नर भी बोलता है | (1) चुराता न्याय जो, रण को बुलाता भी वही है, युधिष्ठिर ! स्वत्व की … Read more