मुगल वंश / Mughal Vansh ( 1526 ई o से 1857 ईo )

मुगल वंशावली 1. जहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर ( 1626-1530 ) 2. नसीरुद्दीन हुमायूं ( 1530-1540; 1555-1556) 3. जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर ( 1556-1605) 4. जहांगीर ( 1605-1627) 5. शाहजहां ( 1627-1658 ) 6. औरंगजेब ( 1658-1707 ) 7. बहादुर शाह ( 1707-1712) 8. जहांदार शाह ( 1712-1713 ) 9. फर्रूखसियर ( 1713-1719 ) 10 मुहम्मद शाह ( … Read more

स्वतंत्रता : अर्थ, परिभाषा एवं प्रकार ( Svatantrta : Arth, Paribhasha Evam Prakar )

स्वतंत्रता का अर्थ स्वतंत्रता को अंग्रेजी में लिबर्टी ( Liberty ) कहते हैं जो लैटिन भाषा के लिबर ( Liber ) शब्द से निकला है जिसका अर्थ है – सभी प्रतिबंधों का अभाव अर्थात प्रत्येक मनुष्य पर से सभी प्रकार के प्रतिबंध हटा दिया जाएँ और उसे अपनी इच्छा अनुसार कार्य करने व जीवन जीने … Read more

अंतहीन दौड़

जैनेंद्र कुमार के व्यंग्यात्मक निबंध ‘बाज़ार दर्शन ‘ और श्यामा प्रसाद के व्यंग्यात्मक निबंध’ उपभोक्तावाद की संस्कृति ‘ में भौतिक साधनों की आकर्षक जकड़ से दिन पर दिन दम तोड़ती जीवन की स्वाभाविक ख़ुशी का शोचनीय चित्र प्रस्तुत किया गया है । बाज़ार वास्तव में हमारी रोज़मर्रा की ज़रूरतों की पूर्ति का साधन है । … Read more

शक्ति : अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं ( Shakti : Arth, Paribhasha Evam Visheshtayen )

शक्ति का अर्थ ( Shakti Ka Arth ) शक्ति राजनीतिक विज्ञान के अध्ययन का मुख्य विषय है | कैटलिन ने राजनीति शास्त्र को शक्ति का मुख्य विषय माना है | लासवेल भी शक्ति को राजनीतिक शास्त्र के अध्ययन का मूल विषय मानते हैं | अरस्तु से लेकर आज तक के राजनीति शास्त्र के विद्वानों ने … Read more

राजनीतिक सिद्धांत : अर्थ, परिभाषा और क्षेत्र ( Rajnitik Siddhant : Arth, Paribhasha Aur Kshetra )

राजनीतिक सिद्धांत को अंग्रेजी भाषा में ‘पॉलिटिकल थ्योरी’ ( Political Theory ) कहा जाता है | ‘थ्यूरी‘ ( Theory) शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द ‘थ्योरिया’ ( Theoria ) से हुई है जिसका अर्थ है – एक ऐसी मानसिक दृष्टि जो एक वस्तु के अस्तित्व और कारणों को प्रकट करती है | विभिन्न विद्वानों … Read more

डॉ लक्ष्मी नारायण लाल के नाटक ( Dr. Lakshminarayan Lal Ke Natak )

डॉ लक्ष्मी नारायण लाल ( 1927 – 1987 ) स्वातंत्र्योत्तर भारत के प्रमुख नाटककार हैं | इन्होंने हिंदी नाटक को नई पहचान दिलाई | उन्होंने अपनी लेखनी से अनेक नाटकों की रचना की | उनके द्वारा रचित प्रमुख नाटक निम्नलिखित हैं :- अंधा कुआं ( 1955 ) – लक्ष्मीनारायण लाल का पहला नाटक, प्रमुख पात्र … Read more

सल्तनत काल / Saltnat Kaal ( 1206 ईo – 1526 ईo )

सल्तनत कालीन वंशावली (A) गुलाम वंश / दास वंश (B) ख़िलजी वंश (C) तुग़लक़ वंश (D) सैयद वंश (E) लोदी वंश ( A ) गुलाम वंश कुतुबद्दीन ऐबक ( 1206 ईo से 1210 ईo ) 2. इल्तुतमिश ( 1211 ईo से 1236 ईo ) 3. रजिया बेगम ( 1236 ईo से 1240 ईo ) 4. … Read more

पल्लवन : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं और नियम ( Pallavan : Arth, Paribhasha, Visheshtayen Aur Niyam )

पल्लवन किसी भाव का विस्तार है जो उसे समझने में सहायक सिद्ध होता है | विद्वान, संत-महात्मा आदि समास -शैली और प्रतीकात्मक शब्दों का प्रयोग करते हुए ऐसी गंभीर बात कह देते हैं जो उनके लिए तो सहज-सरल होती है पर सामान्य व्यक्ति के लिए उसके भाव को समझने में कठिनाई होती है | ऐसे … Read more

संक्षेपण : अर्थ, विशेषताएं और नियम ( Sankshepan : Arth, Visheshtayen Aur Niyam )

संक्षेपण एक कला है जिसका संबंध किसी विस्तृत विषय वस्तु या संदर्भ को संक्षेप में प्रस्तुत करने से होता है | विभिन्न संस्थानों, कार्यालयों और विद्यार्थियों के लिए इसका विशेष महत्व है | इसके अंतर्गत अनावश्यक और अप्रासंगिक अंशों को छोड़कर मूल भाव को ध्यान में रखकर उपयोगी तथ्यों को संक्षेप में प्रकट किया जाता … Read more

प्रयोजनमूलक हिंदी का स्वरूप ( Prayojanmoolak Hindi Ka Swaroop )

हम अपने दैनिक कार्यकलापों में जिस भाषा का प्रयोग करते हैं वह सामान्य व्यवहार की भाषा होती है परंतु विभिन्न औपचारिक कार्यों के लिए जैसे कार्यालय, बैंकिंग, तकनीकी आदि क्षेत्रों में परस्पर पत्र-व्यवहार के लिए जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है, वह प्रयोजनमूलक भाषा कहलाती है | इस प्रकार किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए … Read more

प्रयोजनमूलक भाषा का अर्थ व प्रयोजनमूलक हिंदी का वर्गीकरण ( Prayojanmulak Hindi Ka Vargikaran )

हम अपने दैनिक कार्यकलापों में जिस भाषा का प्रयोग करते हैं वह सामान्य व्यवहार की भाषा होती है परंतु विभिन्न औपचारिक कार्यों के लिए जैसे कार्यालय, बैंकिंग, तकनीकी आदि क्षेत्रों में परस्पर पत्र-व्यवहार के लिए जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है, वह प्रयोजनमूलक भाषा कहलाती है | इस प्रकार किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए … Read more

जैनेंद्र कुमार के उपन्यास ( Jainendra Kumar Ke Upanyas )

जैनेंद्र कुमार ( 2 जनवरी, 1905 – 24 दिसंबर, 1988 ) हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार हैं उन्होंने हिंदी उपन्यास को नई पहचान दिलाई उनके प्रमुख उपन्यास निम्नलिखित हैंं : – 🔹 परख ( 1929 ) – यह जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित प्रथम उपन्यास है | कट्टो, सत्यधन, बिहारी और गरिमा इस उपन्यास के प्रमुुुख पात्र … Read more

उपेंद्रनाथ अश्क के नाटक ( Upendranath Ashk Ke Natak )

उपेंद्रनाथ अश्क ( Upendranath Ashk ) छायावादोत्तर काल के प्रसिद्ध नाटककार हैं | इन्होंने हिंदी नाटक को नई पहचान दी | इन्होंने अपनी लेखनी से अनेक नाटकों की रचना की जो हिंदी नाट्य विधा को नए आयाम प्रदान करते हैं | अश्क़ जी के कुछ प्रसिद्ध नाटक निम्नलिखित हैं :- जय-पराजय ( 1937 ), वैश्या … Read more

भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक ( Bhartendu Harishchandra Ke Natak )

भारतेंदु हरिश्चंद्र ( Bhartendu Harishchandra, 9 september, 1850-6January, 1885) हिंदी के आरंभिक नाटककार हैं | उन्होंने हिंदी नाटक को नई पहचान दी | उन्होंने अपनी लेखनी से अनेक उत्कृष्ट नाटकों की रचना की जिनमें से कुछ मौलिक नाटक है तो कुछ अनूदित | भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा रचित नाटकों को दो भागों में बांटा जा सकता … Read more

पथ के साथी : गद्य शैली/ भाषा शैली ( Path Ke Sathi : Gadya Shaili / Bhasha Shaili )

पथ के साथी ( Path Ke Sathi ) महादेवी वर्मा ( Mahadevi Varma ) द्वारा रचित संस्मरणात्मक कृति है | इस रचना में उन्होंने अपने युग के सात महान साहित्यकारों से संबंधित संस्मरण प्रस्तुत किए हैं | इस रचना में महादेवी वर्मा की शैली भी निराली है और भाषा भी | जिस कृति की भाषा-शैली … Read more