हिंदी-साहित्य के आधुनिक काल की परिस्थितियां ( Hindi Sahitya Ke Adhunik Kal Ki Paristhitiyon )

 हिंदी साहित्य के आधुनिक काल की परिस्थितियां

( Hindi Sahitya :Adhunik Kaal Ki Paristhitiyan )

हिंदी साहित्य के इतिहास को तीन भागों में बांटा जा सकता है – आदिकाल,  मध्यकाल व आधुनिक काल | आदिकाल की समय सीमा संवत 1050 से संवत 1375 तक मानी जाती है | मध्यकाल के पूर्ववर्ती भाग को भक्तिकाल ( संवत 1375 से संवत 1700) तथा उत्तरवर्ती काल को रीतिकाल ( Reetikal ) के नाम से जाना जाता है | रीतिकाल की समय-सीमा संवत 1700 से संवत 1900 तक है | संवत 1900 के बाद के काल को आधुनिक काल या पुनर्जागरण काल के नाम से जाना जाता है |

रीतिकाल के पश्चात हिंदी-साहित्य में दो परिवर्तन आए | विषय के दृष्टिकोण से श्रृंगारपरकता का स्थान सामाजिक सरोकार ने ले लिया वही भाषा की दृष्टि से ब्रजभाषा व अवधी भाषा का स्थान खड़ी बोली हिंदी ने ले लिया |
नारी स्वतंत्रता,  अछूतोद्धार,  शिक्षा का महत्व,  श्रम का महत्व,  मानव की समानता आदि मूल्यों का साहित्य में पदार्पण इसी युग में हुआ | साहित्य की अनेक परंपरागत रूढ़ियों  का ह्रास हुआ | कुछ ऐसे ही कारणों से इस युग को आधुनिक काल या  पुनर्जागरण काल कहा गया |

       ⚫️ आधुनिक काल की परिस्थितियां ⚫️
          ( Adhunik Kaal Ki Parishtiyan )

(1) राजनीतिक परिस्थितियां : आधुनिक काल का आरंभ संवत 1900 या 1843 ईo से माना जाता है | यह समय अंग्रेजों के विरुद्ध बढ़ रहे असंतोष का समय था | अंग्रेजों की सामाजिक,  धार्मिक, आर्थिक व  राजनैतिक नीतियों के कारण भारत का प्रत्येक व्यक्ति उनसे खफा था | अंग्रेजों द्वारा किए गए सामाजिक व धार्मिक सुधार रूढ़िवादी भारतीय स्वीकार नहीं कर पाये | अंग्रेजों की भू-राजस्व नीतियों ने किसानों की कमर तोड़ रही | लॉर्ड डलहौजी की लैप्स की नीति तथा लार्ड वेलेजली की सहायक संधि ने अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति को उजागर कर दिया | वे किसी भी तरह से देशी रियासतों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाना चाहते हैं | अत: 1857 ईo में अंग्रेजों के विरुद्ध का क्रांति का बिगुल बज गया | अंग्रेजों ने दमन-चक्र चलाकर चला कर 1857 की क्रांति को तो दबा दिया लेकिन भारतियों के असंतोष को शांत नहीं कर पाए | भारतीय अंग्रेजों के विरुद्ध संगठित होते रहे | इसी बीच 1885 ईo में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई | आरंभ में भले ही कांग्रेस की स्थापना अंग्रेजों के सहयोग से और अंग्रेजों के  सहयोग के लिए ही की गई थी परंतु धीरे-धीरे इसका स्वरूप बदलने लगा | धीरे-धीरे राष्ट्रवादी नेताओं ने कांग्रेस पर अपना अधिकार जमा लिया | आरंभ में कांग्रेस प्रार्थना के माध्यम से छोटे-छोटे सुधारों की मांग करती थी परंतु बाद में उसने भारतीयों के मूलभूत अधिकारों की मांग करना शुरू कर दिया व इसके लिए दबाव की नीति अपनायी जाने लगी | बाद में एक ऐसा समय भी आया जब कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य ( 1929 ईo ) की मांग कर डाली |  गाँधी जी के आगमन से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक नया मोड़ आया | उनके द्वारा चलाये गए चम्पारण आंदोलन, असहयोग आंदोलन, सविनय आंदोलन व भारत छोड़ो आंदोलन जैसे आंदोलन ने पूरे भारत में देशभक्ति की धारा बहने लगी | एक तरफ जहाँ कांग्रेस के उदारवादी अपनी विनम्र नीतियों से स्वराज्य प्राप्ति का प्रयास कर रहे थे वहीं दूसरी ओर भगत सिंह,  बटुकेश्वर दत्त,  वरिंद्र घोष,  सावरकर बंधु,  चापेकर बंधु व नेता जी सुभाष चंद्र जैसे देशभक्त क्रन्तिकारी गतिविधियों से अंग्रेजों की नाक में दम कर रहे थे | जहाँ एक तरफ अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन से पूरे देश में एकजुटता के अनेक उदाहरण मिलते हैं वहीं अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के कारण साम्प्रदायिक खाई भी बढ़ती जा रही थी | जिसके भयंकर परिणाम भारत की स्वतंत्रता के समय हुए जिसमें हमने न केवल भारत की अखंडता को खो दिया बल्कि मानवता के उन मूल्यों को भी खो दिया जिस पर हम गर्व किया करते थे | इस प्रकार की राजनीतिक परिस्थितियां में आधुनिक साहित्य रचा गया |

(2) आर्थिक परिस्थितियां : भारत में इंग्लैंड सरकार की आर्थिक नीतियां शोषणकारी थी | उनका मुख्य उद्देश्य भारत के आर्थिक संसाधनों का अधिक से अधिक दोहन करना था | वे यहां से कच्चा माल सस्ते दामों में इंग्लैंड के जा रहे थे और वहां पर तैयार माल भारत में महंगे दामों में  बेच रहे थे | इस प्रतिस्पर्धा के सामने भारतीय उद्योग धंधे टिक नहीं पा रहे थे | परिणाम स्वरूप भारतीय कारीगर बेकार हो रहे थे और रोजगार की तलाश में शहरों की ओर भाग रहे थे | शहरों में जनसंख्या बढ़ने लगी थी | भारतीय किसान , मजदूर, व्यापारी , कारीगर आदि सभी अंग्रेजों के शोषण का शिकार थे | अतः सभी संगठित होकर अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े होने लगे थे | भारतीय अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत हुई | खादी का प्रचार इसी आर्थिक शोषण के विरोध का एक रूप था |

(3) सामाजिक और धार्मिक परिस्थितियां : अंग्रेजी शासन और उसकी नीतियों का प्रभाव भारत की सामाजिक धार्मिक परिस्थितियों पर भी पड़ रहा था | इस युग में दोनों तरफ से समाज सुधार और धार्मिक सुधार की बात होने लगी | एक तरफ भारतीय समाज सुधारक समाज सुधार और धर्म सुधार की अलख जगा रहे थे तो दूसरी तरफ अंग्रेज सरकार भी भारत की रूढ़िवादी परंपराओं को अवैध घोषित करने पर आमादा थी | लॉर्ड विलियम बेंटिक ने सती प्रथा कन्या वध जैसी सामाजिक बुराइयों को अवैध घोषित कर दिया | विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित किया गया | दूसरी तरफ भारतीय समाज सुधारक भी इस दिशा में अग्रसर थे | राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद और स्वामी विवेकानंद महादेव गोविंद रानाडे आदि ने भारतीय समाज और धर्म की रूढ़ियों के विरुद्ध आवाज उठाई | महात्मा ज्योतिबा फुले ने दलित उद्धार के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया |सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया और प्रथम महिला विद्यालय की स्थापना की | यह उस समय की बात है जब महिलाओं के लिए घर की दहलीज पार करना भी एक बहुत बड़ी चुनौती था| लोगों ने माता ज्योतिबा बाई फुले का मजाक उड़ाया उनके ऊपर तरह-तरह के लांछन लगाए इसके बावजूद उन्होंने नारी शिक्षा के मुद्दे को इतनी प्रमुखता से उठाया कि आने वाले समय में सभी भारतीय नेताओं व समाज सुधारकों को इसे स्वीकार करना पड़ा | डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के प्रयास दलितों, वंचितों पीड़ितों और उपेक्षितों  को शोषण-मुक्त कराने और समान अधिकार दिलाने के लिये रहा | हिंदू धर्म की बुराइयों के विरुद्ध बड़ी बेबाकी से आवाजें उठने लगी | समाज और धर्म के क्षेत्र में हुए इन परिवर्तनों का प्रभाव साहित्य पर पड़ना स्वाभाविक था |

(4) साहित्यिक परिस्थितियां : आधुनिक युग का साहित्य बदलते युग का साहित्य है | इसी युग के आरंभ में जहां समाज सुधार, धर्म सुधार और स्वतंत्रता महत्वपूर्ण मुद्दे थे ; बाद में यह मुद्दा व्यक्ति की समस्याओं पर केंद्रित होने लगे | आधुनिक युग का साहित्य आम आदमी का साहित्य बन गया | अब साहित्य का मुख्य उद्देश्य राजाओं के गुणगान और राज दरबार की शोभा का वर्णन करना नहीं बल्कि समाज की यथास्थिति का वर्णन करना बन गया |
भारतेंदु युग जहां पुनर्जागरण और देश प्रेम की भावना को लेकर आया वहीं द्विवेदी युग में इन भावनाओं के साथ साथ भाषागत शुद्धता पर बल दिया जाने लगा | छायावाद मनुष्य के अंतर्मन की भावनाओं को अभिव्यक्ति देने लगा और प्रगतिवाद साम्यवादी विचारधारा के साथ लिखा गया जिसमें मजदूरों, दलितों और किसानों की बात कहीं गई | प्रयोगवाद और नई कविता कला व शिल्प क्षेत्रों में एक नवीन परिवर्तन ले कर आई | इस युग में उपन्यास, कहानी, निबंध, नाटक, रिपोर्ताज, रेखाचित्र आदि गद्य विधाओं का आविर्भाव हुआ यही कारण है कि इस काल को गद्य काल के नाम से भी जाना जाता है|

निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि आधुनिक काल की राजनीतिक,  सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व साहित्यिक परिस्थितियां कुछ इस प्रकार की बन गई थी जिन्होंने रीतिकाल से भिन्न एक नये साहित्य का मार्ग प्रशस्त किया | यही कारण है कि आधुनिक काल का साहित्य श्रृंगार, भक्ति व कुलीन वर्ग के विषयों से हटकर आम आदमी की समस्याओं,  इच्छाओं, दुखों व उसके अंतर्मन की दुविधाओं का वर्णन करने लगा |

Other Related Posts

द्विवेदी युग : समय-सीमा, प्रमुख कवि तथा प्रवृत्तियाँ ( Dvivedi Yug : Samay Seema, Pramukh Kavi V Pravrittiyan )

मैथिलीशरण गुप्त ( Maithilisharan Gupt )

मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक परिचय ( Mathilisharan Gupt Ka Sahityik Parichay )

छायावाद : अर्थ, परिभाषा व प्रवृत्तियां ( Chhayavad : Arth, Paribhasha V Pravrittiyan )

जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय ( Jaishankar Prasad Ka Sahityik Parichay )

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का साहित्यिक परिचय

प्रगतिवाद : अर्थ, आरम्भ, प्रमुख कवि व प्रवृतियां ( Pragativad : Arth, Aarambh, Pramukh Kavi V Pravritiyan )

प्रयोगवादी कविता ( नई कविता ) की सामान्य प्रवृतियां ( Prayogvadi kaviata / Nai Kavita Ki Samanya Pravrittiyan )

31 thoughts on “हिंदी-साहित्य के आधुनिक काल की परिस्थितियां ( Hindi Sahitya Ke Adhunik Kal Ki Paristhitiyon )”

Leave a Comment

error: Content is proteced protected !!