मैला आंचल में आंचलिकता ( Maila Aanchal Me Aanchlikta )

मैला आँच ( Maila Aanchal ) फणीश्वरनाथ रेणु ( Fanishwarnath Renu ) द्वारा रचित हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासों में से एक है | यह उपन्यास 1954 ईo. में प्रकाशित हुआ | आंचलिक उपन्यासधारा में मैला आँचल को सर्वश्रेष्ठ उपन्यास माना जाता है | मैला आंचल ( Maila Aanchal ) की आंचलिकता पर विचार करने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि आंचलिकता का अर्थ क्या है और किस प्रकार के उपन्यास को आंचलिक उपन्यास कहा जा सकता है |

डॉ भगत सिंह आंचलिक उपन्यास ( Aanchlik Upanyas ) को परिभाषित करते हुए लिखते हैं – ” जिस उपन्यास में किसी क्षेत्र-विशेष के समाज और जीवन का चित्रण उसी क्षेत्र की भाषा में ज्यों का त्यों हो, उसे क्षेत्रीय उपन्यास या आंचलिक उपन्यास कहते हैं |”

इस परिभाषा के आधार पर आंचलिक उपन्यास के दो प्रधान लक्षण हैं – 1. किसी क्षेत्र विशेष के आचार-विचार, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज आदि का यथार्थ चित्रण | 2. उसी क्षेत्र-विशेष की बोली, शब्दों, मुहावरों में प्रचलित लोक गीतों का प्रयोग |

अतः स्पष्ट है कि अंचल अर्थात क्षेत्र-विशेष आंचलिक उपन्यासों का प्रमुख तत्व है | इसमें अंचल-विशेष के दलितों, पीड़ितों, शोषितों व रूढ़िवादी समाज का यथार्थ अंकन होता है | दूसरा, इसमें वहां के जनजीवन की यथार्थ झांकी प्रस्तुत की जाती है | भाषा में भी उस अंचल में प्रचलित शब्दों, मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग किया जाता है |

जहां तक मैला आंचल ( Maila Anchal ) उपन्यास का प्रश्न है फणीश्वर नाथ रेणु ( Fanishwarnath Renu ) जी ने मैला आंचल की भूमिका में ही इसे आंचलिक उपन्यास घोषित किया है वे लिखते हैं” यह है मैला आंचल, एक आंचलिक उपन्यास | कथानक है पूर्णिया | पूर्णिया बिहार राज्य का एक जिला है |”

मैला आंचल ( Maila Anchal ) उपन्यास में फणीश्वर नाथ रेणु ( Fanishavar nath Renu ) ने वहां के लोगों के रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज, मान्यताओं-परंपराओं आदि का चित्रण किया है | साथ ही जातिगत आधार पर भी आपसी फूट और कमीनेपन को भी उजागर किया है |

आंचलिक उपन्यास के लक्षण या तत्व ( Aanchlik Upanyas Ke Lakshan Ya Tattv )

कतिपय विद्वानों ने आंचलिक उपन्यास ( Aanchlik Upanyas ) के निम्नलिखित लक्षण बताये हैं – (क ) अंचल अर्थात क्षेत्र विशेष का आग्रह, (ख ) क्षेत्र विशेष की सृष्टि व जन-जीवन की यथार्थ झाँकी, (ग ) क्षेत्र विशेष के शब्दों व मुहावरों का प्रयोग |

उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर मैला आंचल की आंचलिकता का विवेचन इस प्रकार है –

( क ) अंचल अर्थात क्षेत्र-विशेष का आग्रह और मैला आंचल

अंचल अर्थात क्षेत्र विशेष का आग्रह आंचलिक उपन्यास का प्रधान लक्षण है | आंचलिक उपन्यास ( Aanchlik Upanyas ) में जिस अंचल या क्षेत्र का चित्रण किया जाता है उस अंचल-विशेष का यथार्थ अंकन किया जाता है |उस अंचल-विशेष के दीन-हीन, दलित, पीड़ित, शोषित, उपेक्षित, तिरस्कृत जीवन की वास्तविक झांकी प्रस्तुत की जाती है |

फणीश्वर नाथ रेणु ( Fanishvar Nath Renu ) द्वारा रचित मैला आंचल ( Maila Aanchal ) में बिहार राज्य के पूर्णिया जिले के मेरीगंज गांव के अंचल के जीवन का यथार्थ वर्णन है | रेणु जी ने मेरीगंज का परिचय देते हुए एक स्थान पर लिखा है ” मेरीगंज एक बड़ा गांव है | बारहों बरन के लोग रहते हैं | गांव के पूरब एक धारा है जिसे कमला नदी कहते हैं | बरसात में कमला भर जाती है | बाकी मौसम में बड़े-बड़े गड्ढों में पानी जमा रहता है | मछलियों और कमल के फूलों से भरे हुए गड्ढे |”

उपन्यासकार इस तथ्य का भी उद्घाटन करता है कि इस गांव का नाम मार्टिन ने अपनी नई दुल्हन मेम मेरी के नाम पर मेरीगंज रख दिया था | मार्टिन ने रोतहट स्टेशन से मेरीगंज तक डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से सड़क बनवाई तथा मेरीगंज में पोस्ट ऑफिस खुलवाया | इसके पश्चात मार्टिन अपनी नवविवाहिता पत्नी मेम मेरी को लाने के लिए कोलकाता गए | लेकिन मेरी गंज पहुंचने के ठीक एक सप्ताह बाद मेरी को ‘जड़ैया’ ने जकड़ लिया और एक सप्ताह के भीतर चल बसी | मार्टिन साहब ने महसूस किया कि पोस्ट ऑफिस से पहले यहां डिस्पेंसरी खुलवाना अत्यंत आवश्यक है | अतः डिस्पेंसरी खुदवाने के लिए मार्टीन अथक प्रयास करता है |

उपन्यास का आरंभ मेरीगंज गांव में मलेरिया सेंटर खुलने की व्यवस्था से होता है | गांव वाले अशिक्षित व अज्ञानी होने के कारण मलेरिया वालों को मलेटरी वाले मान लेते हैं | गांव में राजपूत ब्राह्मण, कायस्थ लोग रहते हैं | लोगों में आपसी फूट है, झगड़े होते रहते हैं | पूरे गांव में केवल दस लोग पढे हैंं | गांव की मुख्य पैदावार है – धान, पाट और खेसारी | रबी की फसल भी कभी-कभी अच्छी हो जाती है |

अतः स्पष्ट है कि मैला आंचल ( Maila Anchal ) में अंचल विशेष का यथार्थ चित्रण है | वहां की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक स्थिति का यथार्थ अंकन है | गांव के लोग भोले-भाले हैं | भोले-भाले का अर्थ है -अनपढ़, अज्ञानी और अंधविश्वासी |

( ख ) क्षेत्र-विशेष की सृष्टि, जनजीवन की यथार्थ झाँकी और मैला आंचल

क्षेत्र-विशेष के वातावरण की सृष्टि उपरांत आंचलिक उपन्यासों में जनजीवन की यथार्थ झांकी प्रस्तुत की जाती है | प्राय: जीवन की यह झांकी उस क्षेत्र के लोगों के रहन-सहन, खान-पान, आचार- विचार-व्यवहार, तीज-त्यौहार, मान्यताओं-परंपराओं आदि के आधार पर की जाती है | इसे निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है :-

1. रहन-सहन, 2. खान-पान, 3. रीति-रिवाज एवं परंपराएं, 4. तीज-त्यौहार, 5. लोकगीत

1. रहन-सहन

प्रायः आंचलिक उपन्यासों में यथार्थ का अंकन होता है | ऐसे उपन्यासों में आंचलिक क्षेत्र अत्यंत पिछड़ा हुआ होता है और समाज में अनेक बुराइयां प्रचलित होती हैं | रेणु ( Renu ) कृत मैला आंचल ( Maila Anchal ) में भी यथार्थ का नग्न चित्रण किया गया है | मैला आंचल ( Maila Aanchal ) उपन्यास में बिहार राज्य के पूर्णिया जिले के एक छोटे से गांव मेरीगंज की कथा है | यहां अज्ञानता व दरिद्रता व्याप्त है | आर्थिक पिछड़ेपन के साथ-साथ मानसिक पिछड़ापन भी है | किसान जी तोड़ मेहनत करते हैं परंतु उनकी मेहनत का फल बड़े किसान और महाजन लूट रहे हैं | दो-तीन किसानों को छोड़कर बाकी सभी किसानों के पास नाम मात्र की जमीन है | वह या तो खेतिहर मजदूर है या बटाई पर खेती करते हैं | उनकी आर्थिक स्थिति इन पंक्तियों से उजागर होती है :- ” उन्हें भरपेट रोटी नहीं मिलती शरीर ढकने के लिए वस्त्र मयस्सर नहीं हैं और आवास के नाम पर फूस की झोपड़ी में उनकी सारी जिंदगी कट जाती है |”

गांव में ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में पूड़ी- जलेबी नहीं चखी | बीमार होने पर भी अधिकतर लोग दवा के पैसे नहीं जुटा पाते | कुल मिलाकर उनका रहन-सहन बहुत साधारण है और असभ्य कबीलों के लोगों से बेहतर नहीं है |

2. खान-पान

मेरीगंज के लोगों का खान-पान अति साधारण है | अधिकांश लोग ऐसे हैं जिन्होंने कभी पूरे वस्त्र नहीं पहने, बहुत से ऐसे हैं जिन्होंने नए वस्त्र नहीं पहने | बहुत से ऐसे हैं जिन्होंने पूड़ी-जलेबी नहीं चखी | जहां तक मैला आँचल ( Maila Aanchal ) की आंचलिकता की बात है इसमें खान-पान का यथार्थ अंकन किया गया है ताकि उस क्षेत्र की तस्वीर पाठकों के सामने आ जाए ||ऐसा करते हुए लेखक उस क्षेत्र-विशेष में प्रचलित खानपान की चीजों का वर्णन स्थानीय भाषा में ही करता है | खान-पान के अंतर्गत चरस, गांजा, ताड़ी, चावल का आटा, गुड, तेल, पूड़ी-जलेबी, मछली, अंडा, रोटी, दूध व चाय आदि का वर्णन करता है | वेशभूषा में खद्दर का कुर्ता, गमछा आदि का वर्णन है वाद्य यंत्रों में खंजरी, ढोलक आदि का वर्णन मैला आँचल ( Maila Anchal ) में मिलता है |

3. रीति रिवाज एवं परंपराएं

किसी क्षेत्र-विशेष के रीति-रिवाज एवं परंपराओं का यथार्थ अंकन करना भी आंचलिक उपन्यास की विशेषता है | रेणु ( Renu ) कृत मैला आंचल ( Maila Aanchal ) में भी मेरीगंज में प्रचलित रीति-रिवाजों और मान्यताओं-परंपराओं की सुंदर झांकी मिलती है | मेरीगंज गांव में शादी-ब्याह के अवसर पर होने वाली परंपराओं और प्रथाओं का सुंदर वर्णन है | श्राद्ध के समय की जाने वाली क्रियाओं का भी उल्लेख मिलता है | साधु और ब्राह्मण भोज का भी सुंदर वर्णन है | लेखक इस विषय में एक स्थान पर लिखता है “सबसे पहले काली थान में पूरी चढ़ाई जाती है | इसके बाद कोठी के जंगल की ओर दो पुड़िया फेंक दी जाती हैं | जंगल के देव-देवी और भूत-पिशाच के लिए | इसके बाद साधु और बाभन भोजन |”

4. तीज-त्योहार

किसी अंचल विशेष में मनाए जाने वाले तीज-त्योहार भी उस अंचल की लोक संस्कृति के परिचायक होते हैं | उन त्योहारों को मनाने के रंग-ढंग व तौर-तरीकों से वहां की जीवन-शैली के विषय में पता चलता है |

मैला आंचल ( Maila Aanchal ) उपन्यास में भी लेखक ने मेरीगंज नामक गांव में मनाए जाने वाले त्योहारों का वर्णन किया है | वैसे तो पूरे उपन्यास में अनेक त्योहारों का वर्णन हुआ है परंतु जिस त्योहार ने वहां की संस्कृति को अच्छे से उद्घाटित किया है वह है – होली का त्योहार | रेणु जी ने अपने उपन्यास में होली के त्यौहार का बड़ा ही रंगीन चित्रण किया है | मेरी गंज के लोगों के लिए यह त्यौहार केवल एक त्यौहार नहीं बल्कि संजीवनी बूटी है | एक स्थान पर लेखक लिखता है ” महंगी पड़े या अकाल हो पर्व-त्योहार तो मनाना ही होगा |” एक अन्य स्थान पर होली के महत्व को उजागर करते हुए लेखक लिखता है” होली तो मुर्दा दिलों को भी गुदगुदी लगाकर जाती है |” …………×…………….×……………×……………….

” रोनी कराहने के लिए बाकी ग्यारह महीने तो हैं ही | फागुन भर तो हंस लो गा लो |” …………..×……………×……………×……………..

” जो जीये सो खेले फाग”

इस प्रकार होली का त्योहार इन लोगों के लिए जीवन का प्रतीक है | यह त्योहार इनके मृतप्राय जीवन में कुछ प्राणों का संचार करता है |

5. लोकगीत

लोक गीत लोक संस्कृति में लोक जीवन का उद्घाटन करते हैं | आते हैं आंचलिक उपन्यासों में यह लोकगीत और अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं |

रेणु ( Renu ) जी ने अपने उपन्यास मैला आँचल ( Maila Aanchal ) में विभिन्न अवसरों पर गाए जाने वाले लोकगीतों का समावेश किया है | इन गीतों में स्वतंत्रता संग्राम का रंग भी है और होली का रंग भी | वर्षा ऋतु की सौंधी महक भी है और बिरह की तड़प भी | रेणु ( Renu ) जी ने साल का कोई ऐसा विशिष्ट अवसर नहीं छोड़ा जिसका लोकगीत से रंगा चित्रण न किया हो | मैला आंचल ( Maila Aanchal ) में प्रयुक्त कुछ उदाहरण देखिए :-

आजादी सम्बन्धी लोकगीत :-

“कहीं पे छापो गंधी महात्मा

चरखा मस्त चलाते हैं |

कहीं पे छापो वीर जवाहिर

जेल के भीतर जाते हैं |

क्रांति सम्बन्धी लोकगीत :-

” अरे ज़िन्दगी है किराँती

किराँती से बिताये जा |

दुनिया के पूंजीवाद को

दुनिया से मिटाये जा |

होली सम्बन्धी गीत :-

“नयना मिलानी करी ले रे सैंया

नयना मिलानी करी ले |

अबकी बेर हम नैहर रहबो

जे दिल चाहे से करी ले |”

वास्तविकता तो यह है कि इन लोकगीतों के कारण ही मेरीगंज की यथार्थ झांकी पाठकों के समक्ष आती है | |

(ग ) क्षेत्र विशेष के शब्दों में मुहावरों का प्रयोग और मैला आँचल

क्षेत्र-विशेष के शब्दों व मुहावरों का प्रयोग भी आंचलिक उपन्यास का लक्षण है | मैला आंचल ( Maila Aanchal ) में स्थानीय शब्दों की भरमार है| इस उपन्यास में जिस क्षेत्र का वर्णन है वहां बहुसंख्यक लोग मैथिली बोलते हैं | अतः उपन्यास में मैथिली शब्दों का आधिक्य है | लोकगीत भी स्थानीय भाषा में रचित हैं | देशज शब्दों की भरमार है जो स्थानीय भाषा से लिये गए हैं जैसे – अटर-पटर, पुच्च-फुच्च, भखर-भखर देखना, उहाल, गुहल, खम्हार आदि | कुछ शब्दों को जानबूझकर विकृत कर स्थानीय रूप दिया गया है, यथा – गंधी महात्मा ( गांधी महात्मा ), परभू ( प्रभु ), इस्तरी ( स्त्री ), विदियारथी ( विद्यार्थी ), आंडोलन ( आंदोलन ), बेकूफ ( बेवकूफ ) आदि |

◼️ निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि रेणु ( Renu ) कृत मैला आंचल ( Maila Aanchal ) में आंचलिक उपन्यासों के सभी तत्व मिलते हैं | इस उपन्यास में अंचल का यथार्थ वर्णन भी है, वहां के लोगों के जनजीवन की यथार्थ झाँकी भी और वहां प्रचलित भाषा का जीवंत रूप भी है | आंचलिक उपन्यास ( Aanchlik Upanyas ) के लिए आवश्यक उपर्युक्त तीनों तत्वों के आधार पर हम पाते हैं कि मैला आंचल उपन्यास में बिहार राज्य के पूर्णिया जिले के मेरीगंज गांव के वातावरण, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज, तीज-त्योहार व भाषा का सुंदर चित्रण मिलता है | अतः निर्विवाद रूप से मैला आंचल उपन्यास को श्रेष्ठ आंचलिक उपन्यास कहा जा सकता है |

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