सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का साहित्यिक परिचय ( Agyey Ka Sahityik Parichay )

जीवन परिचय – सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हिंदी के प्रमुख साहित्यकार हैं | प्रयोगवाद के जनक के रूप में पहचाने जाने वाले अज्ञेय जी का जन्म उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में सन 1911 में हुआ | 1925 ईस्वी में इन्होंने मैट्रिक और 1929 ईस्वी में विज्ञान संकाय में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की | ये स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय रहे | 1930 ईस्वी में इन्हें क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया | लेखन के साथ-साथ ये पत्रकारिता में भी सक्रिय रहे | इन्होंने ‘प्रतीक’, ‘दिनमान’, और ‘नवभारत टाइम्स’ आदि पत्रों का संपादन किया | 1943 ईस्वी में इन्होंने प्रथम तारसप्तक निकाला और इसके साथ ही हिंदी साहित्य में प्रयोगवाद का आरंभ हुआ | वे जीवन भर साहित्य साधना में लीन रहे और अंततः 1987 ईस्वी में इनका देहावसान हो गया |

रचनाएँ – अज्ञेय बहुमुखी प्रतिभा-संपन्न साहित्यकार थे | उन्होंने हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई | इनकी प्रमुख रचनाएं हैं :-

काव्य-संग्रह

भग्नदूत (1933)

चिन्ता (1942)

इत्यलम् (1946)

हरी घास पर क्षण भर (1949)

बावरा अहेरी (1954)

इन्द्रधनु रौंदे हुए ये (1957)

अरी ओ करुणा प्रभामय (1959)

आँगन के पार द्वार (1961) ( साहित्य अकादमी पुरस्कार )

पूर्वा (इत्यलम् तथा हरी घास पर क्षण भर)(1955)

सुनहले शैवाल (1965)

कितनी नावों में कितनी बार (1967) ( ज्ञानपीठ पुरस्कार )

क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1969)

सागर-मुद्रा (1970)

पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1973)

महावृक्ष के नीचे (1977)

नदी की बांक पर छाया (1982)

प्रिज़न डेज़ एण्ड अदर पोयम्स (अंग्रेज़ी में) (1946)

कहानी संग्रह

विपथगा ( 1937 )

परंपरा (1944), कोठरी की बात, शरणार्थी, ये तेरे प्रतिरूप |

कोठरी की बात (1945)

शरणार्थी (1948)

जयदोल (1951)

ये तेरे प्रतिरूप (1961)

अमर वल्लरी और अन्य कहानियाँ (1954)

कड़ियाँ और अन्य कहानियाँ (1957)

अछूते फूल और अन्य कहानियाँ (1960)

जिज्ञासा और अन्य कहानियां (1965)

छोड़ा हुआ रास्ता (सम्पूर्ण कहानियाँ-1) (1975)

लौटती पगडंडियाँ (सम्पूर्ण कहानियाँ-2) (1975)


उपन्यास

शेखर : एक जीवनी, प्रथम भाग (1941)

शेखर : एक जीवनी, द्वितीय भाग (1944)

नदी के द्वीप (1952)

अपने-अपने अजनबी (1961)

निबंध-संग्रह

त्रिशंकु (1945)

सबरंग (1946)

आत्मनेपद (1960)

हिन्दी साहित्य : एक आधुनिक परिदृश्य (1967)

सबरंग और कुछ राग (1969)

आलवाल (1971)

लिखि कागद कोरे (1972)

भवन्ती (1972)

अन्तरा (1975)

अद्यतन (1977)

जोग लिखी (1977)

संवत्सर (1978)

स्रोत और सेतु (1978)

शाश्वती (1979)

व्यक्ति और व्यवस्था (1979)

अपरोक्ष (1979)

युगसन्धियों पर (1981)

धार और किनारे (1982)

स्मृतिलेखा (1982)

कहाँ है द्वारका (1982)

आत्मपरक (1983)

छाया का जंगल (1984)

केन्द्र और परिधि (1984)

सर्जना और सन्दर्भ (1985)

नाटक

उत्तरप्रियदर्शी (1967)

अनूदित रचनाएँ

द रेजिग्नेशन (जैनेन्द्रकुमार के त्यागपत्र का अंग्रेजी में) (1946)

गोरा ( रवीन्द्रनाथ ठाकुर के उपन्यास का हिन्दी अनुवाद) (1961)

राजा (रवीन्द्रनाथ ठाकुर के उपन्यास का हिन्दी अनुवाद) (1963)

टु ईच हिज स्ट्रंजर (अपने-अपने अजनबी का अनुवाद) (1967)

फर्स्ट पर्सन सेकंड पर्सन (अंग्रेजी में चुनी हुई कविताओं का अनुवाद)
(1971)

साइन्ज एण्ड सायलेंस (चुनी हुई कविताओं का अनुवाद, लेनार्ड नैथन
के साथ) (1976)

ठौर-ठिकाने (द्वैभाषिक हिन्दी-जर्मन कविता संकलन-अपनी
कविताओं का अनुवाद) (1977)

आइलैंड्स इन दि स्ट्रीम (नदी के द्वीप का अनुवाद) (1979)

ट्रकुलेंट क्ले (भवन्ती का अनुवाद) (1982)

किंग दि ग्राउंड (अन्तरा का अनुवाद) (1984)

वजीर का फीला (आन्द्रिच के उपन्यास का अनुवाद)

महायात्रा (लागर क्विस्ट के उपन्यास का अनुवाद) (1984)

यात्रा-वृत्तान्त

अरे यायावर रहेगा याद (1953)

एक बूंद सहसा उछली (1960)


सम्पादित ग्रंथ

आधुनिक हिन्दी साहित्य (1942)

तार-सप्तक (कविता-संग्रह) (1943)

दूसरा सप्तक (कविता-संग्रह) (1951)

साहित्यिक विशेषताएं / काव्यगत विशेषताएं

अज्ञेय जी की प्रमुख साहित्यिक विशेषताएं निम्नलिखित हैं –

1. वैयक्तिकता – अज्ञेय के साहित्य में मुख्य रूप से वैयक्तिक भावना का चित्रण है परंतु उनकी व्यक्तिगत भावना सामाजिकता का चित्रण करती है | वह अपने काव्य के माध्यम से व्यष्टि को समष्टि से जोड़ते हैं | वस्तुतः उनकी कविताओं में वर्णित ‘मैं’ ‘हम’ का द्योतक है | ‘यह दीप अकेला’ तथा ‘नदी के द्वीप’ दोनों कविताएं इस तथ्य को प्रमाणित करती हैं | ‘नदी के द्वीप’ में ‘द्वीप’ यदि व्यक्ति के अस्तित्व का प्रतीक है तो नदी की धारा समाज का प्रतीक है | ‘यह दीप अकेला’ में भी कवि प्रत्येक व्यक्ति के अपने व्यक्तित्व, अपनी शक्ति, अपना सामर्थ्य तथा अपनी उपलब्धियों को समाज को समर्पित करने की प्रेरणा देते हैं |

“यह दीप अकेला, स्नेह भरा

है गर्व भरा मदमाता, पर

इसको भी पंक्ति को दे दो |”

2. क्षणवाद का महत्व – अज्ञेय की प्रयोगवादी कविताओं में क्षणवादी प्रवृत्ति देखने को मिलती है | क्षणवादी कवि केवल वर्तमान क्षण में जीता है | वह वर्तमान का ही अत्यधिक उपभोग करना चाहता है | वह न तो अतीत की चिंता करता है न भविष्य की | नस्वर्णिम अतीत पर इतराता है और ना ही भविष्य के सुंदर सपने बुनता है | अज्ञेय जी कहते हैं –

“हमें किसी कल्पिता अजरता का मोह नहीं

आज के विविक्त अद्वितीय इस क्षण को

पूरा हम जी लें, पी लें, आत्मसात कर लें |”

3. अति बौद्धिकता – अज्ञेय के काव्य में अति बौद्धिकता के दर्शन होते हैं | कवि केवल बुद्धि के प्रकाश में ही समस्त तथ्यों को देखना चाहता है | उनकी कविताओं में एक भावना प्रकट होकर पाठक के सामने प्रश्न चिह्न छोड़ देती है जिसे अतिशय बौद्धिकता कहा जा सकता | इस अतिशय बौद्धिकता के कारण उनके काव्य में कई बार भावना पक्ष का ह्रास हुआ है और कविता में यांत्रिकता गई है | लेकिन साथ ही उनके काव्य में बौद्धिकता के समावेश से कविता में तार्किकता का समावेश हुआ है और वह यथार्थ के निकट आई है |

4. प्रणय भावना – यद्यपि कविवर अज्ञेय ने अपने काव्य में अनेक प्रयोग किए हैं | लेकिन भाव पक्ष के दृष्टिकोण से शाश्वत भावनाओं से वे अछूते नहीं रहे | प्रेम भी एक ऐसा ही विषय है जो आरंभ से ही कवियों का वर्ण्य विषय रहा है | अज्ञेय ने अपने काव्य में संयोग तथा वियोग प्रेम के दोनों पक्षों का मार्मिक चित्रण किया है तथापि अनेक आलोचक उन पर यह आरोप लगाते हैं कि उन्होंने प्रेम विषयक अपनी रचनाओं में कामवासना का ही अधिक चित्रण किया | एक उदाहरण देखिए –

“आह मेरा श्वास है उत्तप्त

धमनियों में उमड़ आयी है लहू की धार

काम है अभिशप्त तुम कहां हो नारि |”

5. सामाजिकता – अज्ञेय ने अपने काव्य के माध्यम से समाज का यथार्थ चित्रण किया है | यह सामाजिक चित्रण दो रूपों में हुआ है – सामाजिक रूप में तथा वैयक्तिक रूप में | सामाजिक रुप वह है जहां प्रत्यक्षत: पूरे समाज की व्यथा-कथा कही जाती है | यह वही रूप है जिसका चित्रण प्रगतिवादी काव्य में अधिक मिलता है | इसके विपरीत व्यक्तिवादी स्वरुप वह स्वरूप है जिसमें कवि ‘मैं’ या व्यक्तिगत स्वरूप का प्रयोग करता है लेकिन उसका ‘मैं’ या व्यक्तिगत स्वरूप वास्तव में समाज या समष्टि का प्रतीक होता है |

6. प्रकृति चित्रण – अज्ञेय के काव्य में प्रकृति का चित्रण आलंबनगत तथा उद्दीपनगत दोनों रूपों में हुआ | लेकिन फिर भी उनके काव्य में आलंबनगत प्रकृति चित्रण बहुत कम मिलता है | वे प्रकृति के माध्यम से जीवन के विभिन्न पक्षों को उद्घाटित करते हैं | वे प्रकृति का मानवीकरण करते हुये मानव-जीवन की विभिन्न समस्याओं, विभिन्न स्थितियों का वर्णन भी करते हैं और उनके समाधान के लिए से प्रेरणा भी प्रदान करते हैं |

7. भदेस का चित्रण – अज्ञेय ने अपनी कविताओं में अन्य कवियों के विपरीत उन सभी विषयों को स्थान दिया है जो अभी तक काव्य में उपेक्षित माने जाते थे | ऐसे नए विषयों का समावेश करते हुए कवि ने अनेक स्थलों पर भदेस का वर्णन भी किया है | उनका तर्क यह है कि समाज की घिनौनी, भद्दी तथा उपेक्षित वस्तुओं में भी सौंदर्य देखा जा सकता है | आगे चलकर भदेस का यह चित्रण उनके कविता की एक विशेष प्रवृत्ति बन गया | वे काव्य-उपेक्षित गधे को धैर्य की साक्षात मूर्ति मानते हैं –

“मूत्र सिंचित मृतिका के वृत्त में

तीन टांगों पर खड़ा नतग्रीव,

धैर्य-धन गदहा |”

8. कला पक्ष – अज्ञेय ने अपनी कविताओं, कहानियों तथा अन्य विधाओं में हिंदी की खड़ी बोली का प्रयोग किया है | इनकी भाषा सरल, सहज तथा स्वाभाविक है | इनकी भाषा में तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशज आदि आदि सभी प्रकार के शब्दों का प्रयोग मिलता है | अलंकारों, बिम्बों व प्रतीकों के प्रयोग से इनकी भाषा प्रभावशाली बन गई है | मुक्त छंद का प्रयोग होते हुए भी इनकी कविता में लय व प्रवाह प्रवाह दर्शनीय है | इनकी भाषा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन्होंने रूढ़िगत काव्य-परंपराओं का निर्वहन न करते हुए भाषा के क्षेत्र में नवीन प्रयोग किए | इनका शब्द चयन, उपमान व प्रतीक सर्वथा नवीन हैं |

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