लोकतंत्र का संकट ( Loktantra Ka Sankat )
पुरुष जो सोच नहीं पा रहे
किंतु अपने पदों पर आसीन है और चुप हैं
तानाशाह क्या तुम्हें इनकी भी जरूरत होगी
जैसे तुम्हें उनकी है जो कुछ न कुछ उटपटांग विरोध करते रहते हैं |
सब व्यवस्थाएं अपने को और अधिक संकट के लिए
तैयार करती रहती हैं
और लोगों को बताती रहती हैं
कि यह व्यवस्था बिगड़ रही है | 1️⃣
तब जो लोग सचमुच जानते हैं कि यह व्यवस्था बिगड़ रही है
वे उन लोगों के शोर में छिप जाते हैं
जो इस व्यवस्था को और अधिक बिगाड़ते रहना चाहते हैं
क्योंकि
उसी में उनका हित है
लोकतंत्र का विकास राज्यहीन समाज की ओर होता है
इसलिए लोकतंत्र को लोकतंत्र में शासक बिगाड़कर
राजतंत्र बनाते हैं | 2️⃣
You are problome of democracy in writing.
क्षमा करना, मैं आपके कहने का आशय नहीं समझा |