ध्रुवस्वामिनी जयशंकर प्रसाद कृत ध्रुवस्वामिनी नाटक का सबसे प्रमुख तथा केंद्रीय पात्र है | संपूर्ण नाटक की कथा ध्रुवस्वामिनी के इर्द-गिर्द घूमती है | वह चंद्रगुप्त की वाग्दत्ता पत्नी है लेकिन रामगुप्त शिखर स्वामी के षड्यंत्र से न केवल ध्रुवस्वामिनी से जबरन विवाह कर लेता है बल्कि राज्य भी हड़प लेता है | शकराज नाटक का खल पात्र है वह भी ध्रुवस्वामिनी पर मुग्ध हो जाता है और संधि प्रस्ताव के रूप में रामगुप्त से ध्रुवस्वामिनी की मांग करता है | कायर रामगुप्त ध्रुवस्वामिनी को उसे सौंपने के लिए तैयार हो जाता है | नाटक के अंत में चंद्रगुप्त न केवल शकराज का वध करके ध्रुवस्वामिनी के सम्मान की रक्षा करता है बल्कि रामगुप्त से उसे मुक्ति भी दिलाता है | नाटक के अंत में, ध्रुवस्वामिनी चंद्रगुप्त को अपने पति रूप में पाने में सफल हो जाती है | इस प्रकार हम देखते हैं कि ध्रुवस्वामिनी ही एक ऐसा पात्र है जो नाटक में आद्यांत गतिशील रहता है | ध्रुवस्वामिनी का चरित्र चित्रण नाटक के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पात्र के रूप में हुआ है |
ध्रुवस्वामिनी की चारित्रिक विशेषताएं ( Dhruvswamini Ki Charitrik Visheshtayen )
ध्रुवस्वामिनी की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है :-
🔷 नाटक की नायिका
ध्रुवस्वामिनी प्रस्तुत नाटक की नायिका है | नाटक की संपूर्ण कथा ध्रुवस्वामिनी के इर्द-गिर्द ही घूमती है | वह चंद्रगुप्त से प्रेम करती है | वह चंद्रगुप्त की वाग्दत्ता पत्नी है | चंद्रगुप्त भी उससे प्रेम करता है और उससे शादी करना चाहता है लेकिन चंद्रगुप्त का बड़ा भाई रामगुप्त भी उस पर मुग्ध हो जाता है और शिखर स्वामी के षड्यंत्र से उससे जबरन शादी कर लेता है और चंद्रगुप्त के राज्य को भी हड़प लेता है | शकराज भी ध्रुवस्वामिनी के रूप सौंदर्य पर आसक्त हो जाता है | वह ध्रुवस्वामिनी को पाने के लिए लालायित रहता है | वह एक संधि-प्रस्ताव रामगुप्त के पास भेजता है कि अगर रामगुप्त अपने राज्य तथा राज्यवासियों की रक्षा करना चाहता है तो वह ध्रुवस्वामिनी को उसे सौंप दें | अंत में ध्रुवस्वामिनी के गौरव की रक्षा करने के लिए चंद्रगुप्त अपनी मर्यादा का उल्लंघन कर अपने बड़े भाई के विरुद्ध विद्रोह कर बैठता है और न केवल शकराज का वध करता है बल्कि उसे रामगुप्त के चंगुल से भी मुक्त करवाता है | इस प्रकार हम देखते हैं कि नाटक में कथा को गति प्रदान करने में ध्रुवस्वामीनी की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका है |
वह नाटक के नायक चंद्रगुप्त को उसकी वीरता, पराक्रम, शौर्य और कर्तव्य की याद दिलाती है वहीं दूसरी ओर नाटक के खल-पात्र रामगुप्त और शकराज के कार्य-व्यापारों को निर्देशित करने में भी उसकी महती भूमिका है | एक सच्ची प्रेमिका होने के साथ-साथ सदियों से नारी के प्रति हो रहे अत्याचारों का विरोध कर वह नाटक के एक अन्य उद्देश्य ‘नारी स्वतंत्रता व उसके अधिकार’ को उजागर करती है |
🔷 अद्वितीय सुंदरी
ध्रुवस्वामिनी अप्रतिम सौंदर्य की मूर्ति है | उसकी सुंदरता के कारण ही चंद्रगुप्त उसे अपना दिल दे बैठता है | उसके रूप-सौंदर्य के कारण ही रामगुप्त उसे बलपूर्वक अपनी पत्नी बनाता है | शकराज भी उसकी सुंदरता पर मुग्ध है और रामगुप्त के पास सन्धि-प्रस्ताव भेजता है कि अगर ध्रुवस्वामिनी उसे भेंट में दे दी जाए तो वह युद्ध की समाप्ति की घोषणा कर देगा | एक अद्वितीय सुंदरी ही इतने पुरुषों के हृदय की धड़कनों को विचलित कर सकती है |
🔷 परंपरागत अबला नारी
नाटक के आरंभ में ध्रुवस्वामिनी एक परंपरागत अबला नारी प्रतीत होती है | चंद्रगुप्त से प्रेम करने के बावजूद उसकी शादी जबरन रामगुप्त से कर दी जाती है | बिना कोई विरोध किए वह अपने आप को नई परिस्थितियों के अनुसार ढालने की कोशिश करने लगती है |लेकिन दिल से कभी भी रामगुप्त को पति रूप में स्वीकार नहीं कर पाती लेकिन जब शकराज संधि-प्रस्ताव के रूप में ध्रुवस्वामिनी की मांग करता है और कायर रामगुप्त उस संधि प्रस्ताव को स्वीकार कर ध्रुवस्वामिनी को भेंटस्वरूप उसके पास भेजने के लिए तैयार हो जाता है तो वह टूट जाती है और रामगुप्त के सामने अनुनय-विनय करने लगती है लेकिन जब रामगुप्त उसकी इस प्रार्थना को भी ठुकरा देता है तो वह विरोध पर उतर आती है | लेकिन यहां भी उसकी कमजोरी ही प्रकट होते हैं जब वह स्वयं आत्महत्या करने के लिए तैयार हो जाती है |
🔷 व्यावहारिक एवं बुद्धिमान :
ध्रुवस्वामिनी व्यवहारिक एवं बुद्धिमान है | रामगुप्त को पति रूप में स्वीकार करना भी उसकी व्यावहारिकता का ही एक परिचय है | नाटक के आरंभ में वह खडगधारिणी स्त्री के समक्ष अपने हृदय की सभी बातों को नहीं बताती | वह अपने हृदय के भावों को किसी ढंग से छुपा कर रखती है | शकराज के शिविर में भी वह बुद्धिमता से काम लेती है और शकराज का वध करने में चंद्रगुप्त का साथ देती है | सामंत कुमारों तथा प्रजा को अपने पक्ष में करना भी उसकी बुद्धिमता का परिचायक है | धर्मगुरु भी उसके तर्कों को सुनकर उसे रामगुप्त से संबंध-विच्छेद करने और चंद्रगुप्त से पुनर्विवाह करने की आज्ञा प्रदान कर देते हैं |
🔷 दुविधाग्रस्त नारी
संपूर्ण नाटक में ध्रुवस्वामिनी का चरित्र दुविधाग्रस्त नजर आता है | वह प्रेम चंद्रगुप्त से करती है लेकिन उसे शादी रामगुप्त से करनी पड़ती है | उसका मन विरोध करना चाहता है लेकिन नहीं कर पाता | वह रामगुप्त की कायरता और निर्बलता और दूषित मानसिकता का विरोध करना चाहती है लेकिन नहीं कर पाती | वह चीख-चीखकर चंद्रगुप्त के प्रति अपने प्रेम को उजागर करना चाहती है लेकिन नहीं कर पाती | लेकिन नाटक के अंत में आते-आते उसकी यह दुविधा दूर हो जाते हैं | वह खुलकर रामगुप्त का विरोध भी करती है और चंद्रगुप्त से अपने प्रेम की स्वीकारोक्ति भी |
🔷 नारी-सुलभ गुणों से युक्त
ध्रुवस्वामिनी नारी-सुलभ गुणों से युक्त है | वह प्रेम, दया, क्षमा जैसे गुणों की साक्षात मूर्ति है |
चंद्रगुप्त से प्रेम करना और चाहकर भी उसे भुला न पाना जहां उसके प्रेम का परिचायक है वही रामगुप्त के साथ जबरन बंधी रहना भी उसके नारी-सुलभ मजबूरी को ही प्रकट करता है | नाटक में कई स्थान पर उसका यह प्रेम जाने-अनजाने छलक भी उठता है जब चंद्रगुप्त उसे बचाने के लिए शक-शिविर में जाने की बात करता है तो वह अपने आप को नहीं रोक पाती हैं और सबके सामने उसे आलिंगन कर लेती है और कहती है – “नहीं, मैं तुमको नहीं जाने दूंगी |”
एक नारी होने के नाते ध्रुवस्वामिनी क्षमा और दया की भी मूर्ति है वह कोमा और मिहिर देव को शकराज का शव ले जाने की सहर्ष आज्ञा प्रदान कर देती |
🔷 आत्म-गौरव की भावना से ओतप्रोत
ध्रुवस्वामिनी आत्म-गौरव की भावना से ओतप्रोत है | जबरन रामगुप्त से विवाह होने के कारण वह उसे पति रूप में मन से कभी स्वीकार नहीं करती | उसकी आत्मा उसे कभी इसकी स्वीकारोक्ति नहीं देती | अपने आत्म-गौरव की रक्षा के लिए वह तब रामगुप्त के आगे अनुनय-विनय करने लगती है जब रामगुप्त उसे शकराज के पास भेजने की बात को स्वीकार कर लेता है | लेकिन वहां से भी निराशा हाथ लगने पर वह आत्महत्या करने के लिए उद्धत हो जाती है |
🔷 अन्याय और अत्याचार का सामना करने वाली
यद्यपि नाटक में कई स्थान पर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे ध्रुवस्वामिनी महज एक अबला नारी है जो अपने ऊपर हो रहे हर प्रकार के अत्याचार को सहन करने के लिए विवश है तथापि नाटक में ऐसे कई दृश्य भी आते हैं जब वह अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध मुखर हो जाती है |
शकराज का संधि-प्रस्ताव स्वीकार करने पर वह रामगुप्त को निर्बल कायर कह कर उसकी भर्त्सना करती है |
जब चंद्रगुप्त को बंदी बना लिया जाता है तो वह खुद चंद्रगुप्त से लौह-श्रृंखलाओं को तोड़ने का आग्रह करती है |
नारी की दुर्दशा के लिए वह भारतीय धर्म-शास्त्रों को दोषी मानते हुए उन्हें नारी की दुर्दशा के लिए उत्तरदायी मानती है |
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि ध्रुवस्वामिनी प्रस्तुत नाटक का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पात्र है | ध्रुवस्वामिनी का चरित्र चित्रण न केवल ध्रुवस्वामिनी के चरित्र पर प्रकाश डालता है बल्कि चन्द्रगुप्त, रामगुप्त आदि अन्य पात्रों के चरित्र तथा नाटक के उद्देश्य पर भी प्रकाश डालता है |
Other Related Posts
ध्रुवस्वामिनी नाटक की तात्विक समीक्षा
ध्रुवस्वामिनी : संक्षिप्त कथानक/कथासार
ध्रुवस्वामिनी : कथावस्तु के आधार पर समीक्षा
ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चंद्रगुप्त का चरित्र चित्रण
Thank you sir bahut achche se samajh aaya
Thank you
Thank you sir for understand story
Aabhar charn
Sir aap muje pdf de sakte hai
Thank you sir bhut hi each ha aur samjh bhi aa gya
Aabhar
Bahut ache dhaang se btaya aapne sir
आभार
ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर रामगुप्त का चरित्र चित्रण — भी लिख दीजिए ।